विष्णु पुराण - तीसरा अध्याय
श्री मैत्रेय जी बोले - हे भगवन! जो ब्रह्म निर्गुण, अप्रमेय, शुद्ध और निर्मलात्मा है उसका सरगादिका कर्त्ता होना कैसे सिद्ध हो सकता है|
श्री पराशर जी बोले - हे तपस्वियों मे श्रेष्ठ मैत्रेय! समस्त भाव-पदार्थों की शक्तियाँ अचित्य ग्यान की विष्य होती है; अतः अग्नि की शक्ति उष्णता के समान ब्रह्म की भी सरगादि रचनारूप शक्तियाँ स्वाभाविक है| अब जिस प्रकार नारायण नामक लोक-पितामह भगवान ब्रह्माजी सृष्टि की रचना मे प्रवृत्त होते है सो सुनो| हे विद्वान! वे सदा उपचार से ही उत्पन्न हुये कहलाते है| उनके अपने परिमाण से उनकी आयु सौ वर्ष की कही जाती है| उस का नाम पर है, उसका आधा प्रार्द्ध कहलाता है|
श्री पराशर जी बोले - हे तपस्वियों मे श्रेष्ठ मैत्रेय! समस्त भाव-पदार्थों की शक्तियाँ अचित्य ग्यान की विष्य होती है; अतः अग्नि की शक्ति उष्णता के समान ब्रह्म की भी सरगादि रचनारूप शक्तियाँ स्वाभाविक है| अब जिस प्रकार नारायण नामक लोक-पितामह भगवान ब्रह्माजी सृष्टि की रचना मे प्रवृत्त होते है सो सुनो| हे विद्वान! वे सदा उपचार से ही उत्पन्न हुये कहलाते है| उनके अपने परिमाण से उनकी आयु सौ वर्ष की कही जाती है| उस का नाम पर है, उसका आधा प्रार्द्ध कहलाता है|
हे अनघ! मैने जो तुमसे विष्णु भगवान का काल स्वरूप कहा था उसी के द्वारा उस ब्रह्मा की तथा और भी जो पृथिवी, पर्वत, समुद्र आदि चराचर जीव हैं उनकी आयु का परिमाण किया जाता है| हे मुनिश्रेष्ठ! पंद्रह निमेष को काष्ठा कहते हैं, तीस काष्ठा की कला तथा टील कला का एक मुहूर्त होता है| तीस मुहूर्त का मनुष्य का एक दिन-रात कहा जाता है और उतने ही दिन-रात का दो पक्ष युक्त एक मास होता है| छह महीनो का एक अयन मिलकर एक वर्ष होता है| दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है और उत्तरायण दिन|