अग्नि पुराण - पांचवा अध्याय - श्री रामावतार-वर्णन के प्रसंग में रामायण-बालकाण्ड की संक्षिप्त कथा
अग्निदेव कहते हैं - वशिष्ठ! अब मैं ठीक उसी प्रकार रामायण का वर्णन करूँगा, जैसे पूर्वकाल में नारदजी ने महर्षि वाल्मीकिजी को सुनाया था। इसका पाठ भोग और मोक्ष-दोनों को देने वाला है।
देवर्षि नारद कहते हैं - वाल्मीकिजी! भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्माजी के पुत्र से सूर्य और सूर्य से वैवस्तमनु का जन्म हुआ। उसके बाद वैवस्तमनु से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति हुई इक्ष्वाकु के वंश में ककुत्स्थ नामक राजा हुए। ककुत्स्थ के रघु, रघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए। उन राजा दशरथ से रवां आदि राक्षसों का वध करने के लिये साक्षात् भगवान् विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए। उनकी बड़ी रानी कौसल्या के गर्भ से श्री राम चन्द्र जी का प्रादुर्भाव हुआ। कैकेयी से भारत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनो रानियों को यज्ञसिद्ध चारू दिए थे, जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ। श्रीराम आदि सभी भाई अपने पिता के ही सामान पराक्रमी थे। एक समय मुनिवर विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में विघ्न डालने वाले निशाचरों का नाश करने के लिये राजा दशरथ से प्रार्थना की (कि आप अपने पुत्र श्रीराम को मेरे साथ भेज दें)। तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेज दिया। श्रीरामचंद्रजी ने वहां जाकर मुनि से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा पायी और तड़का नाम वाली निशाचरी का वध किया। फिर उन बलवान वीर ने मारीच नामक राक्षस को मानवास्त्र से मोहित करके दूर फेंक दिया और यज्ञविघातक राक्षस सुबाहु को दल-बलसहित मार डाला। इसके बाद वे कुछ काल तक मुनि के सिद्धाश्रम में ही रहे। तत्पश्चात विश्वामित्र आदि महर्षियों के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला नरेश का धनुष-यज्ञ देखने के लिये गए।
{अपनी माता अहिल्या के उद्धार कि वार्ता सुनकर संतुष्ट हुए} शतानंदजी ने निमित्त-कारण बनकर श्रीराम से विश्वामित्र मुनि के प्रभाव का वर्णन किया। राजा जनक ने अपने यज्ञ में मुनियों सहित श्रीरामचन्द्र जी का पूजन किया। श्रीराम ने धनुष को चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला। तदन्तर महाराज जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता को, जिसके विवाह के लिये पराक्रम ही शुल्क निश्चित किया गया था, श्रीरामचन्द्र जी को समर्पित किया। श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ आदि गुरुजनों के मिथिला में पधारने पर सबके सामने सीता का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। उस समय लक्ष्मण ने भी मिथिलेश-कन्या उर्मिला को अपनी पत्नी बनाया। राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्यायें थी - श्रुतकीर्ति और मांडवी। इनमें मांडवी के साथ भारत ने और श्रुतकीर्ति के साथ शत्रुघ्न ने विवाह किया। उसके बाद राजा जनक से भली-भांति पूजित हो श्रीरामचंद्र जी ने वसिष्ठ आदि महर्षियों के साथ वहां से प्रस्थान किया। मार्ग में जम्दाग्निनंदन परशुराम को जीतकर वे अयोध्या पहुंचे। वहां जाने पर भारत ओर्र शत्रुघ्न अपने मामा राजा याधुजित की राजधानी को चले गए।
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'श्रीरामायण - कथा के अंतर्गत बालकाण्ड में आये हुए विषय का वर्णन' सम्बन्धी पांचवा अध्याय पूरा हुआ।
देवर्षि नारद कहते हैं - वाल्मीकिजी! भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्माजी के पुत्र से सूर्य और सूर्य से वैवस्तमनु का जन्म हुआ। उसके बाद वैवस्तमनु से इक्ष्वाकु की उत्पत्ति हुई इक्ष्वाकु के वंश में ककुत्स्थ नामक राजा हुए। ककुत्स्थ के रघु, रघु के अज और अज के पुत्र दशरथ हुए। उन राजा दशरथ से रवां आदि राक्षसों का वध करने के लिये साक्षात् भगवान् विष्णु चार रूपों में प्रकट हुए। उनकी बड़ी रानी कौसल्या के गर्भ से श्री राम चन्द्र जी का प्रादुर्भाव हुआ। कैकेयी से भारत और सुमित्रा से लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न का जन्म हुआ। महर्षि ऋष्यश्रृंग ने उन तीनो रानियों को यज्ञसिद्ध चारू दिए थे, जिन्हें खाने से इन चारों कुमारों का आविर्भाव हुआ। श्रीराम आदि सभी भाई अपने पिता के ही सामान पराक्रमी थे। एक समय मुनिवर विश्वामित्र ने अपने यज्ञ में विघ्न डालने वाले निशाचरों का नाश करने के लिये राजा दशरथ से प्रार्थना की (कि आप अपने पुत्र श्रीराम को मेरे साथ भेज दें)। तब राजा ने मुनि के साथ श्रीराम और लक्ष्मण को भेज दिया। श्रीरामचंद्रजी ने वहां जाकर मुनि से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा पायी और तड़का नाम वाली निशाचरी का वध किया। फिर उन बलवान वीर ने मारीच नामक राक्षस को मानवास्त्र से मोहित करके दूर फेंक दिया और यज्ञविघातक राक्षस सुबाहु को दल-बलसहित मार डाला। इसके बाद वे कुछ काल तक मुनि के सिद्धाश्रम में ही रहे। तत्पश्चात विश्वामित्र आदि महर्षियों के साथ लक्ष्मण सहित श्रीराम मिथिला नरेश का धनुष-यज्ञ देखने के लिये गए।
{अपनी माता अहिल्या के उद्धार कि वार्ता सुनकर संतुष्ट हुए} शतानंदजी ने निमित्त-कारण बनकर श्रीराम से विश्वामित्र मुनि के प्रभाव का वर्णन किया। राजा जनक ने अपने यज्ञ में मुनियों सहित श्रीरामचन्द्र जी का पूजन किया। श्रीराम ने धनुष को चढ़ा दिया और उसे अनायास ही तोड़ डाला। तदन्तर महाराज जनक ने अपनी अयोनिजा कन्या सीता को, जिसके विवाह के लिये पराक्रम ही शुल्क निश्चित किया गया था, श्रीरामचन्द्र जी को समर्पित किया। श्रीराम ने भी अपने पिता राजा दशरथ आदि गुरुजनों के मिथिला में पधारने पर सबके सामने सीता का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। उस समय लक्ष्मण ने भी मिथिलेश-कन्या उर्मिला को अपनी पत्नी बनाया। राजा जनक के छोटे भाई कुशध्वज थे। उनकी दो कन्यायें थी - श्रुतकीर्ति और मांडवी। इनमें मांडवी के साथ भारत ने और श्रुतकीर्ति के साथ शत्रुघ्न ने विवाह किया। उसके बाद राजा जनक से भली-भांति पूजित हो श्रीरामचंद्र जी ने वसिष्ठ आदि महर्षियों के साथ वहां से प्रस्थान किया। मार्ग में जम्दाग्निनंदन परशुराम को जीतकर वे अयोध्या पहुंचे। वहां जाने पर भारत ओर्र शत्रुघ्न अपने मामा राजा याधुजित की राजधानी को चले गए।
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'श्रीरामायण - कथा के अंतर्गत बालकाण्ड में आये हुए विषय का वर्णन' सम्बन्धी पांचवा अध्याय पूरा हुआ।