पद्मपुराण का उपक्रम तथा परिचय
श्री व्यासजी के शिष्य परम बुद्धिमान लोमहर्षणजी ने एकांत में बैठे हुए (अपने पुत्र) उग्रश्रवा नामक सूतजी से कहा -'बेटा! तुम ऋषियों के आश्रमों पर जाओ और उनके पूछने पर सम्पूर्ण धर्मों का वर्णन करो। तुमने मुझसे जो संक्षेप में सुना है, वह उन्हें विस्तारपूर्वक सुनाओ। मैंने महर्षि वेदव्यास जी के मुख से समस्त पुराणों का ज्ञान प्राप्त किया है और वह सब तुम्हें बता दिया है; अतः अब मुनियों के समक्ष तुम उसका विस्तार के साथ वर्णन करो। प्रयाग में कुछ महर्षियों ने, जो उत्तम कुलों में उत्पन्न हुए थे, साक्षात भगवान् से प्रश्न किया था। वे (यज्ञ करने के योग्य) किसी पावन प्रदेश को जानना चाहते थे। भगवान नारायण ही सबके हितैषी हैं, वे धर्मानुष्ठान की इच्छा रखने वाले उन महर्षियों के पूछने पर बोले-'मुनिवरों! यह सामने जो चक्र दिखायी दे रहा है, इसकी कहीं तुलना नहीं है। इसकी नाभि सुन्दर और स्वरूप दिव्य है यह सत्य की और जाने वाला है। इसकी गति सुन्दर एवं कल्याणमयी है। तुम लोग सावधान होकर नियमपूर्वक इसके पीछे-पीछे जाओ। तुम्हें अपने लिए हितकारी स्थान की प्राप्ति होगी। यह धर्ममय चक्र यहाँ से जा रहा है। जाते-जाते जिस स्थान पर इसकी नेमी जीर्ण-शीर्ण होकर गिर पड़े, उसी को पुण्यमय प्रदेश समझना।' उन सभी महर्षियों से ऐसा कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गए और वह धर्म-चक्र नैमिषर्यं के गंगावर्त नामक स्थान पर गिरा। तब ऋषियों ने निमि शीर्ण होने के कारण उस स्थान नाम 'नैमिष' रखा और नैमीषारण्य में दीर्घकाल तक चालू रहने वाले यज्ञों का अनुष्ठान आरम्भ कर दिया। वहीँ तुम भी जाओ और ऋषियों के पूछने पर उनके धर्म-विषयक संशयों का निवारण करो।'
तदनन्तर ज्ञानी उग्रश्रवा पिता की आज्ञा मानकर उन मुनीश्वरों के पास गए तथा उनके चरण पकड़कर हाथ जोड़कर उन्होंने प्रणाम किया। सूतजी बड़े बुद्धिमान थे, उन्होंने अपनी नम्रता और प्रणाम आदि के द्वारा महर्षियों को संतुष्ट किया। वे यज्ञ में भाग लेने वाले महर्षि भी सदस्यों सहित बहुत प्रसन्न हुए तथा सबने एकत्रित होकर सूतजी का यथायोग्य आदर-सत्कार किया।
ऋषि बोले-देवताओं के सामान तेतजवी सूतजी! आप कैसे और किस देश से यहाँ आये हैं? अपने आने का कारण बतलाईये।
सूतजी ने कहा- महर्षियों! मेरे बुद्धिमान पिता व्यास-शिष्य लोमहर्षण जी ने मुझे यह आज्ञा दी है कि 'तुम मुनियों के पास जाकर उनकी सेवा में रहो और वे जो कुछ पूछें, उसे बताओ।' आप लोग मेरे पूज्य हैं। बताईये, मैं कौन-सी कथा कहूं? पुराण, इतिहास अथवा भिन्न-भिन्न प्रकार के धर्म- जो आज्ञा दीजिये, वही सुनाऊँ।
सूतजी का यह मधुर वचन सुनकर वे श्रेष्ठ महर्षि बहुत प्रसन्न हुए। अत्यंत विश्वसनीय, विद्वान लोमहर्षण पुत्र उग्रश्रवा को उपस्थित देख उनके हृदय में पुराण सुनने की इच्छा जाग्रत हुयी। उस यज्ञ में यजमान थे महर्षि शौनक, जो सम्पूर्ण शास्त्रों के विशेषज्ञ, मेधावी तथा (वेद के) विज्ञानमय आरण्यक-भाग के आचार्य थे। वे सब महर्षियों के साथ श्रद्धा का आश्रय लेकर धर्म सुनने की इच्छा से बोले।
शौनक ने कहा- महाबुद्धिमान सूतजी! आपने इतिहास और पुराणों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए ब्रह्मज्ञानियों में श्रेष्ठ भगवान् व्यासजी कि भली भांति आराधना की। उनकी पुराण-विषयक श्रेष्ठ बुद्धि से आपने अच्छी तरह लाभ उठाया है। महामते! यहाँ जो ये श्रेष्ठ ब्राह्मण विराजमान हैं, इनका मन पुराणों में लग रहा है। ये पुराण सुनना चाहते हैं। अतः आप इन्हें पुराण सुनाने की ही कृपा करें। ये सभी श्रोता, जो यहाँ एकत्रित हुए हैं, बहुत ही श्रेष्ठ हैं। भिन्न-भिन्न गोत्रों में इनका जन्म हुआ है। ये वेदवादी ब्राह्मण अपने-अपने वंश का पौराणिक वर्णन सुने। इस दीर्घकालीन यज्ञ के पूर्ण होने तक आप मुनियों को पुराण सुनाईये। महाप्राज्ञ! आप इन सब लोगों से पद्म पुराण की कथा कहिये। पद्म की उत्पत्ति कैसे हुई, उससे ब्रह्माजी का आविर्भाव किस प्रकार हुआ तथा कमल से प्रकट हुए ब्रह्माजी ने किस जगत की सृष्टि की - ये सब बातें इन्हें कहिये।
उनके इस प्रकार पूछने पर लोमहर्षण कुमार सूतजी ने सुन्दर वाणी में सूक्षम अर्थ से भरा हुआ न्याययुक्त वचन कहा - 'महर्षियों! आप लोगों ने जो मुझे पुराण सुनाने की आज्ञा दी है, इससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुयी है; यह मुझपर आपका महान अनुग्रह है। सम्पूर्ण धर्मों के पालन में लगे रहने वाले पुराणवेत्ता विद्वानों ने जिनकी भली-भाँति व्याख्या की है, उन पुराणोक्त विषयों को मैंने जैसा सुना है, उसी रूप में वह सब आपको सुनाऊंगा। सत्पुरुषों की दृष्टि में सूत जाति का सनातन धर्म यही है कि वह देवताओं, ऋषियों, तथा अमित तेजस्वी राजाओं की वंश-परंपरा को धारण करे। उसे याद रखे तथा इतिहास और पुराणों में जिन ब्रह्मवादी महात्माओं का वर्णन किया गया है, उनकी स्तुति करे; क्योंकि जब वेन कुमार राजा पृथु का यज्ञ हो रहा था, उस समय सूत और मागध ने पहले-पहल उन महाराज की स्तुति की थी। उस स्तुति से संतुष्ट होकर महात्मा पृथु ने उन दोनों को वरदान दिया। वरदान में उन्होंने सूत को सूत नामक देश और मागध को मगध का राज्य प्रदान कर दिया था। क्षत्रिय के वीर्य और ब्रहाणी के गर्भ से जिसका जन्म होता है वह सूत कहाता है। ब्राह्मणों ने मुझे पुराण सुनाने का अधिकार दिया है। आपने धर्म का विचार करके ही मुझसे पुराण की बातें पूछी हैं; इसलिए इस भूमण्डल में जो सबसे उत्तम एवं ऋषियों द्वारा सम्मानित पद्मपुराण है, उसकी कथा आरम्भ करता हूँ। श्री कृष्ण द्वैपायन व्यासजी साक्षात भगवान् नारायण के स्वरूप हैं। वे ब्रह्मवादी, सर्वज्ञ, सम्पूर्ण लोकों में पूजित तथा अत्यंत तेजस्वी हैं। उन्ही से प्रकट हुए पुराणों का मैंने अपने पिताजी के पास रहकर अध्ययन क्या है। पुराण सब शास्त्रों के पहले से विद्यमान हैं। ब्रह्माजी ने (कल्प के आदि में) सबसे पहले पुराणों का ही स्मरण किया था। पुराण त्रिवर्ग अर्थात धर्म, अर्थ, और काम के साधक एवं परम पवित्र हैं। उनकी रहना सौ करोड़ श्लोकों में हुयी है। समय के अनुसार इतने बड़े पुराणों का श्रवण और पठान असम्भव देखकर स्वयं भगवान् उनका संक्षेप करने के लिए प्रत्येक द्वापरयुग में व्यासरूप से अवतार लेते हैं और पुराणों को अठारह भागों में बांटकर उन्हें चार लाख श्लोकों में सिमित कर देते है। पुराणों का यह संक्षिप्त संस्करण ही इस भूमण्डल पर प्रकाशित होता है। देवलोकों में आज भी सौ करोड़ श्लोकों का विस्तृत पुराण मौजूद है।
अब मैं परम पवित्र पद्म पुराण का वर्णन आरम्भ करता हूँ। उसमे पांच खण्ड और पचपन हजार श्लोक हैं। पद्मपुराण में सबसे पहले सृष्टि खंड है। उसके बाद भूमिखंड आता है। फिर स्वर्गखण्ड और उसके पश्चात पातालखण्ड है। तदनन्तर परम उत्तम उत्तरखंड का वर्णन आया है। इतना ही पद्मपुराण है। भगवान् की नाभि से जी महान पद्म (कमल) प्रकट हुआ था, जिससे इस जगत की उत्पत्ति हुयी है, उसी के वृतांत का आश्रय लेकर यह पुराण प्रकट हुआ है। इसलिए इसे पद्मपुराण कहते हैं। यह पुराण स्वभाव से ही निर्मल है, उस पर भी इसमें श्री विष्णु भगवान् के माहात्मय का वर्णन होने से इसकी निर्मलता और भी बढ़ गयी है। देवाधिदेव भगवान् विष्णु ने पूर्वकाल में ब्रह्माजी के प्रति जिसका उपदेश किया था तथा ब्रह्माजी ने जिसे अपने पुत्र मरीचि को सुनाया था वही यह पद्मपुराण है। ब्रह्माजी ने इसे इस जगत में प्रचलित किया है।