पद्म पुराण
पद्म पुराण प्रमुख रूप से वैष्णव पुराण है। इसके श्रवण करने से जीवन पवित्र हो जाता है। अट्ठारह पुराणों में पद्मपुराण का एक विशिष्ट स्थान है। पद्मपुराण में पचपन हजार श्लोक हैं जो पाँच खण्डों में विभक्त हैं। जिसमें पहला खण्ड सृष्टिखण्ड, दूसरा-भूमिखण्ड, तीसरा-स्वर्गखण्ड, चैथा-पातालखण्ड, पाँचवा-उत्तरखण्ड। इस पुराण का पद्मपुराण नाम पड़ने का कारण यह है कि यह सम्पूर्ण जगत स्वर्णमय कमल (पद्म) के रूप में परिणित था।
तच्च पद्मं पुराभूतं पष्थ्वीरूप मुत्तमम्।
यत्पद्मं सा रसादेवी प ष्थ्वी परिचक्ष्यते।। (पद्मपुराण)
अर्थात् भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल उत्पन्न हुआ तब वह पष्थ्वी की तरह था। उस कमल (पद्म) को ही रसा या पष्थ्वी देवी कहा जाता है। इस पष्त्वी में अभिव्याप्त आग्नेय प्राण ही ब्रह्मा हैं जो चर्तुमुख के रूप में अर्थात् चारों ओर फैला हुआ सष्ष्टि की रचना करते हैं और वह कमल जिनकी नाभि से निकला है, वे विष्णु भगवान सूर्य के समान पष्थ्वी का पालन-पोषण करते हैं।
पद्मपुराण में नन्दी धेनु उपाख्यान, वामन अवतार की कथा, तुलाधार की कथा, सुशंख द्वारा यम कन्या सुनीथा को श्राप की कथा, सीता-शुक संवाद, सुकर्मा की पितष् भक्ति तथा विष्णु भगवान के पुराणमय स्वरूप का अद्भुत वर्णन है। पद्मपुराण के अनुसार व्यक्ति ज्यादा कर्मकाण्डों पर न जाकर यदि साधारण जीवन व्यतीत करते हुये, सदाचार और परोपकार के मार्ग पर चलता है तो उसे भी पुराणों का पूर्ण फल प्राप्त होता है तथा वह दीर्घ जीवी हो जाता है। इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा है-
भष्गु के पुत्र. मष्कण्डु की कोई सन्तान नहीं थी। तब उन्होंनें अपनी पत्नी के साथ कठोर तपस्या की। तपस्या के फलस्वरूप उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम उन्होंनें मार्कण्डेय रखा। जब यह बालक पाँच वर्ष का हुआ तो मष्कण्डु की कुटिया में एक सिद्ध योगी आये। बालक मार्कण्डेय ने उन्हें प्रणाम किया तो वह योगी चिन्तामग्न हो गये। मर्कण्डु जी ने योगी से चिन्ता का कारण पूछा तो योगी ने कहा ऋषिवर तुम्हारा पुत्र बहुत सुन्दर, सुशील एवं ज्ञानवान है परन्तु दुर्भाग्य से इसकी आयु केवल छह मास ही शेष है। मष्कण्डु ने सबकुछ बड़े धैर्य से सुना। तत्पश्चात् उन्होंनें पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया और सन्ध्या सिखा दी और नियम बताये, कहा-बेटा तुम्हें अपने से बड़ा जो भी मिल जाये, उसे प्रणाम करना।
पिता की आज्ञा से मार्कण्डेय बालक परिचित-अपरिचित जो भी उसे मिलता, उसे वह जरूर प्रणाम करता। धीरे-धीरे समय बीतता गया, छठवाँ महीना आ गया। अब बालक की मष्त्यु की घड़ी में केवल पाँच दिन शेष रह गये। एक दिन संयोगवश सप्तऋषि उधर से निकले तो बालक ने उन्हें भी श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। तब सप्तऋषियों ने भी सहज ही बालक को ‘‘आयुष्मान भव, वत्स,’’ आर्शीवाद दिया। बाद में विचार करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि इसकी आयु तो केवल पाँच दिन ही शेष है। अपनी बात झूठी न हो, इसका क्या उपाय किया जाय? इस पर वे विचार करने लगे। क्योंकि आयु कर्म-वित्त-विद्या एवं निधन इन पाँचों का निर्धारण तो ब्रह्मा जी शिशु के गर्भ में ही निर्धारित कर देते हैं। इसलिये इसकी आयु तो अब ब्रह्मा जी ही बढ़ा सकते हैं। सप्तऋषि बालक को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे। नियमानुसार बालक ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया। भगवान ब्रह्मा ने भी ‘‘आयुष्मान भव’’ कहकर दीर्घायु होने का आर्शीवाद दिया। सप्तऋषियों ने बताया कि इस बालक की आयु तो केवल पाँच दिन की शेष बची है, इसलिये आप प्रभु ऐसा करें कि आप भी झूठे न हों और हम भी झूठे न बने। तब ब्रह्मा जी ने कहा इसकी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। इस प्रकार प्रणाम करके मार्कण्डेय जी ब्रह्मआयु प्राप्त करके चिरंजीवी हो गये। जब प्रलय का समय आता है और सारी सष्ष्टि का विनाश हो जाता है तब भी मार्कण्डेय ऋषि जीवित रहते हैं और भगवान के दर्शन करते रहते हैं। इस प्रकार से अभी तक मार्कण्डेय जी ने न जाने कितने चर्तुयुगों को देख लिया है।
पद्मपुराण सुनने का फल:-
पद्मपुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। मनुष्य ज्ञानी होकर इस संसार में पुर्नजन्म नहीं लेता। पद्मपुराण कथा करने एवं सुनने से प्रेत तत्व भी शान्त हो जाता है। यज्ञ दान तपस्या और तीर्थों में स्नान करने से जो फल मिलता है वह फल पद्मपुराण की कथा सुनने से सहजमय ही प्राप्त हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिये पद्म पुराण सुनना सर्वोत्तम उपाय है।
पद्मपुराण करवाने का मुहुर्त:-
पद्मपुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। पद्मपुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन पद्मपुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
पद्मपुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
पद्मपुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में पद्मपुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी पद्मपुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पद्मपुराण करने के नियम:-
पद्मपुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। पद्मपुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
तच्च पद्मं पुराभूतं पष्थ्वीरूप मुत्तमम्।
यत्पद्मं सा रसादेवी प ष्थ्वी परिचक्ष्यते।। (पद्मपुराण)
अर्थात् भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल उत्पन्न हुआ तब वह पष्थ्वी की तरह था। उस कमल (पद्म) को ही रसा या पष्थ्वी देवी कहा जाता है। इस पष्त्वी में अभिव्याप्त आग्नेय प्राण ही ब्रह्मा हैं जो चर्तुमुख के रूप में अर्थात् चारों ओर फैला हुआ सष्ष्टि की रचना करते हैं और वह कमल जिनकी नाभि से निकला है, वे विष्णु भगवान सूर्य के समान पष्थ्वी का पालन-पोषण करते हैं।
पद्मपुराण में नन्दी धेनु उपाख्यान, वामन अवतार की कथा, तुलाधार की कथा, सुशंख द्वारा यम कन्या सुनीथा को श्राप की कथा, सीता-शुक संवाद, सुकर्मा की पितष् भक्ति तथा विष्णु भगवान के पुराणमय स्वरूप का अद्भुत वर्णन है। पद्मपुराण के अनुसार व्यक्ति ज्यादा कर्मकाण्डों पर न जाकर यदि साधारण जीवन व्यतीत करते हुये, सदाचार और परोपकार के मार्ग पर चलता है तो उसे भी पुराणों का पूर्ण फल प्राप्त होता है तथा वह दीर्घ जीवी हो जाता है। इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा है-
भष्गु के पुत्र. मष्कण्डु की कोई सन्तान नहीं थी। तब उन्होंनें अपनी पत्नी के साथ कठोर तपस्या की। तपस्या के फलस्वरूप उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम उन्होंनें मार्कण्डेय रखा। जब यह बालक पाँच वर्ष का हुआ तो मष्कण्डु की कुटिया में एक सिद्ध योगी आये। बालक मार्कण्डेय ने उन्हें प्रणाम किया तो वह योगी चिन्तामग्न हो गये। मर्कण्डु जी ने योगी से चिन्ता का कारण पूछा तो योगी ने कहा ऋषिवर तुम्हारा पुत्र बहुत सुन्दर, सुशील एवं ज्ञानवान है परन्तु दुर्भाग्य से इसकी आयु केवल छह मास ही शेष है। मष्कण्डु ने सबकुछ बड़े धैर्य से सुना। तत्पश्चात् उन्होंनें पुत्र का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया और सन्ध्या सिखा दी और नियम बताये, कहा-बेटा तुम्हें अपने से बड़ा जो भी मिल जाये, उसे प्रणाम करना।
पिता की आज्ञा से मार्कण्डेय बालक परिचित-अपरिचित जो भी उसे मिलता, उसे वह जरूर प्रणाम करता। धीरे-धीरे समय बीतता गया, छठवाँ महीना आ गया। अब बालक की मष्त्यु की घड़ी में केवल पाँच दिन शेष रह गये। एक दिन संयोगवश सप्तऋषि उधर से निकले तो बालक ने उन्हें भी श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। तब सप्तऋषियों ने भी सहज ही बालक को ‘‘आयुष्मान भव, वत्स,’’ आर्शीवाद दिया। बाद में विचार करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि इसकी आयु तो केवल पाँच दिन ही शेष है। अपनी बात झूठी न हो, इसका क्या उपाय किया जाय? इस पर वे विचार करने लगे। क्योंकि आयु कर्म-वित्त-विद्या एवं निधन इन पाँचों का निर्धारण तो ब्रह्मा जी शिशु के गर्भ में ही निर्धारित कर देते हैं। इसलिये इसकी आयु तो अब ब्रह्मा जी ही बढ़ा सकते हैं। सप्तऋषि बालक को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुँचे। नियमानुसार बालक ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया। भगवान ब्रह्मा ने भी ‘‘आयुष्मान भव’’ कहकर दीर्घायु होने का आर्शीवाद दिया। सप्तऋषियों ने बताया कि इस बालक की आयु तो केवल पाँच दिन की शेष बची है, इसलिये आप प्रभु ऐसा करें कि आप भी झूठे न हों और हम भी झूठे न बने। तब ब्रह्मा जी ने कहा इसकी आयु मेरी आयु के बराबर होगी। इस प्रकार प्रणाम करके मार्कण्डेय जी ब्रह्मआयु प्राप्त करके चिरंजीवी हो गये। जब प्रलय का समय आता है और सारी सष्ष्टि का विनाश हो जाता है तब भी मार्कण्डेय ऋषि जीवित रहते हैं और भगवान के दर्शन करते रहते हैं। इस प्रकार से अभी तक मार्कण्डेय जी ने न जाने कितने चर्तुयुगों को देख लिया है।
पद्मपुराण सुनने का फल:-
पद्मपुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। मनुष्य ज्ञानी होकर इस संसार में पुर्नजन्म नहीं लेता। पद्मपुराण कथा करने एवं सुनने से प्रेत तत्व भी शान्त हो जाता है। यज्ञ दान तपस्या और तीर्थों में स्नान करने से जो फल मिलता है वह फल पद्मपुराण की कथा सुनने से सहजमय ही प्राप्त हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिये पद्म पुराण सुनना सर्वोत्तम उपाय है।
पद्मपुराण करवाने का मुहुर्त:-
पद्मपुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। पद्मपुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन पद्मपुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
पद्मपुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
पद्मपुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में पद्मपुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी पद्मपुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
पद्मपुराण करने के नियम:-
पद्मपुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। पद्मपुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।