Naag Kesar
Botanical name : Mesua ferrea auct.non Linn. (M. nagassarium (Burm.f.) Kosterm
Family : Clusiaceae
SANSKRIT SYNONYMS
Nagakesara, Nagapushpa, Kanakahva, Hemakinjalka
AYURVEDIC PROPERTIES
Rasa : Kashaya, Tikta
Guna : Lakhu, Rooksha
Virya : Ushna
Vipaka : Katu
PLANT NAME IN DIFFERENT LANGUAGES
English : Iron wood tree
Hindi : Peela nagkesar
Malayalam : Nagapoov, Nagachampakam, Nanku, Vayanav, Churuli, Eliponku
Distribution – Throughout India growing wild in planes.
PLANT DESCRIPTION -- An evergreen tree grows up to 30 meters in height. Leaves simple, opposite, thick, lanceolate, covered with cuticle, red colored when young. Flowers white, fragrant, axillary or sometimes at the tip of branches. Stamen golden yellow. Fruits ovoid with surrounded by persistent sepals. Seeds 1-4 angular, grey or brown and smooth.
MEDICINAL PROPERTIES
Plant pacifies vitiated pitta, vata, fever, cough, asthma, itching, hyper perspiration, skin diseases, and acid peptic diseases.
Useful part : Flowers, oil
नागचम्पा की कलि को नागकेसर कहते है| नागकेसर कडवी, कसेली, आमपाचक, किंचित गरम, रुखी, हलकी ,गरम, रुधिर रोग, वात, ह्रदय की पीड़ा, पसीना, दुर्गन्ध, विष, तृषा, कोढ़, कान्त रोग और मस्तक शूल का नाश करती है| भगवान शिव जी की पूजा में नागकेसर का उपयोग किया जाता है, तांत्रिक प्रयोगों और लक्ष्मी दायक प्रयोगों में भी नागकेसर का उपयोग किया जाता है
इसे नागेश्वर भी कहते हैं। देखने में यह कलि मिर्च के समान गोल और गेरू के समान रंगीन होती है। इसका फूल गुच्छेदार होता है। नागकेसर महादेव को बहुत प्रिय है। अभिमंत्रित नागकेसर वशीकरण के लिए बहुत उपयोगी होता है
१. नागकेसर, चमेली का फल, तगर, कुमकुम, कूट को एक साथ मिलाकर्र रवि, पुष्य योग या गुरु पुष्य योग के समय खरल में कूल लें, फिर कपद्छान कर गाय का दूध मिलाकर माथे पर तिलक लगाने से अति तीव्र वशीकरण होता है।
२. धन-संपदा प्राप्ति के लिए पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग को दूध, दही, शहद, मीठा, घी, गंगाजल से अभिषेक कर पञ्च विल्वपत्र के साथ नागकेसर के फूल शिवलिंग पर अर्पित करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक अविरोध करते रहे। अंतिम दिन अर्पित किये विल्वपत्र और पुष्प घर लाकर तिजोरी में रख दें। अप्रत्याशित रूप से धन की वृद्धि होगी।
३. चांदी के ढक्कन वाली छोटी डिब्बी में नागकेसर बंद कर अपने पास रखने से काल सर्प दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
४. कुंडली में चंद्रमा कमजोर होने पर नागकेसर से शिवजी की पूजा करनी चाहिए।
Family : Clusiaceae
SANSKRIT SYNONYMS
Nagakesara, Nagapushpa, Kanakahva, Hemakinjalka
AYURVEDIC PROPERTIES
Rasa : Kashaya, Tikta
Guna : Lakhu, Rooksha
Virya : Ushna
Vipaka : Katu
PLANT NAME IN DIFFERENT LANGUAGES
English : Iron wood tree
Hindi : Peela nagkesar
Malayalam : Nagapoov, Nagachampakam, Nanku, Vayanav, Churuli, Eliponku
Distribution – Throughout India growing wild in planes.
PLANT DESCRIPTION -- An evergreen tree grows up to 30 meters in height. Leaves simple, opposite, thick, lanceolate, covered with cuticle, red colored when young. Flowers white, fragrant, axillary or sometimes at the tip of branches. Stamen golden yellow. Fruits ovoid with surrounded by persistent sepals. Seeds 1-4 angular, grey or brown and smooth.
MEDICINAL PROPERTIES
Plant pacifies vitiated pitta, vata, fever, cough, asthma, itching, hyper perspiration, skin diseases, and acid peptic diseases.
Useful part : Flowers, oil
नागचम्पा की कलि को नागकेसर कहते है| नागकेसर कडवी, कसेली, आमपाचक, किंचित गरम, रुखी, हलकी ,गरम, रुधिर रोग, वात, ह्रदय की पीड़ा, पसीना, दुर्गन्ध, विष, तृषा, कोढ़, कान्त रोग और मस्तक शूल का नाश करती है| भगवान शिव जी की पूजा में नागकेसर का उपयोग किया जाता है, तांत्रिक प्रयोगों और लक्ष्मी दायक प्रयोगों में भी नागकेसर का उपयोग किया जाता है
इसे नागेश्वर भी कहते हैं। देखने में यह कलि मिर्च के समान गोल और गेरू के समान रंगीन होती है। इसका फूल गुच्छेदार होता है। नागकेसर महादेव को बहुत प्रिय है। अभिमंत्रित नागकेसर वशीकरण के लिए बहुत उपयोगी होता है
१. नागकेसर, चमेली का फल, तगर, कुमकुम, कूट को एक साथ मिलाकर्र रवि, पुष्य योग या गुरु पुष्य योग के समय खरल में कूल लें, फिर कपद्छान कर गाय का दूध मिलाकर माथे पर तिलक लगाने से अति तीव्र वशीकरण होता है।
२. धन-संपदा प्राप्ति के लिए पूर्णिमा के दिन शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग को दूध, दही, शहद, मीठा, घी, गंगाजल से अभिषेक कर पञ्च विल्वपत्र के साथ नागकेसर के फूल शिवलिंग पर अर्पित करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक अविरोध करते रहे। अंतिम दिन अर्पित किये विल्वपत्र और पुष्प घर लाकर तिजोरी में रख दें। अप्रत्याशित रूप से धन की वृद्धि होगी।
३. चांदी के ढक्कन वाली छोटी डिब्बी में नागकेसर बंद कर अपने पास रखने से काल सर्प दोष का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
४. कुंडली में चंद्रमा कमजोर होने पर नागकेसर से शिवजी की पूजा करनी चाहिए।
जायफल पाक (अवलेह)
आयुर्वेद शास्त्र में शीतकाल में सेवन करने योग्य पाक बनाने की कई विधियां दी गई हैं। कुछ पाक विधियां सिर्फ पुरुषों के लिए सेवन योग्य होती हैं और कुछ विधियां सिर्फ स्त्रियों के लिए तो कुछ विधियां ऐसी भी होती हैं जो पुरुष और स्त्री दोनों के लिए सेवन योग्य होती हैं। जायफल पाक स्त्री-पुरुष दोनों के लिए सेवन योग्य है।
जायफल पाक के घटक द्रव्य : जायफल 100 ग्राम, दूध 2 लीटर, शुद्ध घी 200 ग्राम, शकर डेढ़ किलो या आवश्यकता के अनुसार। दालचीनी, इलायची, तेजपत्र, नागकेसर, लौंग, पीपल, सौंठ, सेमल के फूल, कचूर, रूमी मस्तंगी, छुहारे, मुलहठी, नागरमोथा, आंवला, तगर, समुद्र शेष, लसूडे, सुपारी, अकरकरा, कौंच बीज, बादाम, पिस्ता, तालमखाना, त्रिकूट, सौंफ, चन्दन प्रत्येक द्रव्य 10-10 ग्राम। मोती भस्म, स्वर्ण माक्षिक, चांदी भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म और केशर 2-2 ग्राम व आधा किलो शहद।
निर्माण विधि : जायफल पीसकर महीन चूर्ण कर लें। इसे दो लीटर दूध में डालकर उबालें और मावा करके उतार लें। इसे 200 ग्राम शुद्ध घी में भून लें। जब अच्छा गुलाबी सिक जाए तब उतार लें।
शकर की चासनी बनाकर मावा डालकर खूब अच्छी तरह से मिला लें। सब काष्ठौषधियों के अलग-अलग कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और प्रत्येक द्रव्य का चूर्ण 10-10 ग्राम लेकर मावे मे डाल दें और ठण्डा कर लें।
आधा किलो शहद में सारी भस्में और केशर डालकर मावा भी डाल दें और खूब अच्छी तरह हिला-चलाकर मिलाएं, ताकि सब द्रव्य ठीक से परस्पर मिल जाएं।
मात्रा और सेवन विधि : प्रातः 1-2 चम्मच अवलेह चाटकर खाते हुए कुनकुना गर्म दूध पिएं। पूरे शीतकाल सेवन करें।
जायफल पाक के लाभ : यह अवलेह स्त्री-पुरुषों के लिए समान रूप से हितकारी और बल पुष्टिदायक है। पुरुषों के लिए यह एक श्रेष्ठ वाजीकारक, कामोत्तेजन, यौन शक्ति बढ़ाने वाला, नपुंसकता, शीघ्रपतन और वीर्य का पतलापन आदि विकारों को दूर करने वाला तथा अत्यन्त बलवीर्यवर्द्धक है।
स्त्रियों के लिए भी यह पौष्टिक, शक्तिवर्द्धक और शरीर को सुडौल बनाने वाला उत्तम योग है। इन रोगों के अलावा यह प्रमेह, बवासीर, संग्रहणी, क्षय, श्वास, कास, मन्दाग्नि, ज्वर, पाण्डु, त्रिदोष, हृदय रोग सिर के रोग तथा शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है। शरीर में गर्मी और बलवीर्य की वृद्धि करता है। यह बाजार में नहीं मिलता, इसलिए इस योग को घर पर ही बनाना होगा।
आयुर्वेद शास्त्र में शीतकाल में सेवन करने योग्य पाक बनाने की कई विधियां दी गई हैं। कुछ पाक विधियां सिर्फ पुरुषों के लिए सेवन योग्य होती हैं और कुछ विधियां सिर्फ स्त्रियों के लिए तो कुछ विधियां ऐसी भी होती हैं जो पुरुष और स्त्री दोनों के लिए सेवन योग्य होती हैं। जायफल पाक स्त्री-पुरुष दोनों के लिए सेवन योग्य है।
जायफल पाक के घटक द्रव्य : जायफल 100 ग्राम, दूध 2 लीटर, शुद्ध घी 200 ग्राम, शकर डेढ़ किलो या आवश्यकता के अनुसार। दालचीनी, इलायची, तेजपत्र, नागकेसर, लौंग, पीपल, सौंठ, सेमल के फूल, कचूर, रूमी मस्तंगी, छुहारे, मुलहठी, नागरमोथा, आंवला, तगर, समुद्र शेष, लसूडे, सुपारी, अकरकरा, कौंच बीज, बादाम, पिस्ता, तालमखाना, त्रिकूट, सौंफ, चन्दन प्रत्येक द्रव्य 10-10 ग्राम। मोती भस्म, स्वर्ण माक्षिक, चांदी भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म और केशर 2-2 ग्राम व आधा किलो शहद।
निर्माण विधि : जायफल पीसकर महीन चूर्ण कर लें। इसे दो लीटर दूध में डालकर उबालें और मावा करके उतार लें। इसे 200 ग्राम शुद्ध घी में भून लें। जब अच्छा गुलाबी सिक जाए तब उतार लें।
शकर की चासनी बनाकर मावा डालकर खूब अच्छी तरह से मिला लें। सब काष्ठौषधियों के अलग-अलग कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें और प्रत्येक द्रव्य का चूर्ण 10-10 ग्राम लेकर मावे मे डाल दें और ठण्डा कर लें।
आधा किलो शहद में सारी भस्में और केशर डालकर मावा भी डाल दें और खूब अच्छी तरह हिला-चलाकर मिलाएं, ताकि सब द्रव्य ठीक से परस्पर मिल जाएं।
मात्रा और सेवन विधि : प्रातः 1-2 चम्मच अवलेह चाटकर खाते हुए कुनकुना गर्म दूध पिएं। पूरे शीतकाल सेवन करें।
जायफल पाक के लाभ : यह अवलेह स्त्री-पुरुषों के लिए समान रूप से हितकारी और बल पुष्टिदायक है। पुरुषों के लिए यह एक श्रेष्ठ वाजीकारक, कामोत्तेजन, यौन शक्ति बढ़ाने वाला, नपुंसकता, शीघ्रपतन और वीर्य का पतलापन आदि विकारों को दूर करने वाला तथा अत्यन्त बलवीर्यवर्द्धक है।
स्त्रियों के लिए भी यह पौष्टिक, शक्तिवर्द्धक और शरीर को सुडौल बनाने वाला उत्तम योग है। इन रोगों के अलावा यह प्रमेह, बवासीर, संग्रहणी, क्षय, श्वास, कास, मन्दाग्नि, ज्वर, पाण्डु, त्रिदोष, हृदय रोग सिर के रोग तथा शारीरिक दुर्बलता को दूर करता है। शरीर में गर्मी और बलवीर्य की वृद्धि करता है। यह बाजार में नहीं मिलता, इसलिए इस योग को घर पर ही बनाना होगा।
नागकेसर १संज्ञा स्त्री० [सं०नागकेशर या नागकेसर] एक सीधा सदाबहार पेड जो देखने में बहुत सुंदर होता है ।
विशेष— यह द्विदल अंगुर से उत्पन्न होता है । पत्तियाँ इसकी बहुत पतली और घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है । इसमें चार दलों के बडे़ और सफेद फूल गरमियों में लगते हैं जिनमें बहुत अच्छी महक होती है । लकड़ी इसकी इतनी कडी और मजबूत होती है कि काटनेवाले की कुल्हाडियों की धारें मुड मुड जाती है; इसी से इसे वज्रकाठ भी कहत हैं । फलों में दो या तीन बीज निकलते हैं ।
हिमालय के पूरबी भाग, पूरबी बंगाल, आसाम, बरमा, दक्षिण भारत, सिहल आदि में इसके पेड बहुतायत से मिलते हैं । नागकेसर के सूखे फूल औषध, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं । इनके रंग से प्रायः रेशम रँगा जाता है । सिंहल में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है । मदरास में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं । इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं । लकड़ी ऐसी अच्छी होती है कि केवल हाथ से रँगने से ही उसमें वरानिश की सी चमक आ जाती है ।
बैद्यक में नागकेसर कसेली, गरम, रुखी, हलकी तथा ज्वर, खुजली, दुर्गंध, कोढ, विष, प्यास, मतली और पसीने को दूर करनेवाली मानी जाती है । खूनी बवासीर में भी वैद्य लोग इसे देते हैं । इसे नागचंपा भी कहते हैं ।
विशेष— यह द्विदल अंगुर से उत्पन्न होता है । पत्तियाँ इसकी बहुत पतली और घनी होती हैं, जिससे इसके नीचे बहुत अच्छी छाया रहती है । इसमें चार दलों के बडे़ और सफेद फूल गरमियों में लगते हैं जिनमें बहुत अच्छी महक होती है । लकड़ी इसकी इतनी कडी और मजबूत होती है कि काटनेवाले की कुल्हाडियों की धारें मुड मुड जाती है; इसी से इसे वज्रकाठ भी कहत हैं । फलों में दो या तीन बीज निकलते हैं ।
हिमालय के पूरबी भाग, पूरबी बंगाल, आसाम, बरमा, दक्षिण भारत, सिहल आदि में इसके पेड बहुतायत से मिलते हैं । नागकेसर के सूखे फूल औषध, मसाले और रंग बनाने के काम में आते हैं । इनके रंग से प्रायः रेशम रँगा जाता है । सिंहल में बीजों से गाढा, पीला तेल निकालते हैं, जो दीया जलाने और दवा के काम में आता है । मदरास में इस तेल को वातरोग में भी मलते हैं । इसकी लकड़ी से अनेक प्रकार के सामान बनते हैं । लकड़ी ऐसी अच्छी होती है कि केवल हाथ से रँगने से ही उसमें वरानिश की सी चमक आ जाती है ।
बैद्यक में नागकेसर कसेली, गरम, रुखी, हलकी तथा ज्वर, खुजली, दुर्गंध, कोढ, विष, प्यास, मतली और पसीने को दूर करनेवाली मानी जाती है । खूनी बवासीर में भी वैद्य लोग इसे देते हैं । इसे नागचंपा भी कहते हैं ।