पंचम प्रश्न
३६ सत्यकाम का प्रश्न-ओंकारोपासक को किस लोक की प्राप्ति होती है?
तदन्तर उन पिप्पलाद मुनि ने शिबिपुत्र सत्यकाम ने पूछा - 'भगवन! मनुष्यों में जो पुरुष प्राणप्रयाणपर्यंत इस ओंकार का चिंतन करें, वह उस (ओंकरोपासना) से किस लोक को जीत लेता है?
३७ ओंकारोपासक से प्राप्तव्य पर अथवा अपर ब्रह्म
उस से उस पिप्पलाद ने कहा-हे सत्यकाम! यह जो ओंकार है वही निश्चय पर और अपर ब्रह्म है। अतः विद्वान इसी के आश्रय से उनमें से किसी एक (ब्रह्म) को प्राप्त हो जाता है।
३८ एकमात्राविशिष्ट औंकरोपासना का फल
वह यदि एक मात्राविशिष्ट ओंकार का ध्यान करता है तो उसी से बोध को प्राप्त कर तुरंत ही संसार को प्राप्त हो जाता है। उसे ऋचाएं मनुष्यलोक में ले जाती है। वहां वह ताप, ब्रह्मचर्य और श्रद्धा से संपन्न होकर महिमा का अनुभव करता है।
३९ द्विमात्राविशिष्ट औंकारोपासना का फल
और यदि वह द्विमात्राविशिष्ट ओंकार के छंटन द्वारा मन से एकतत्व को प्राप्त हो जाता है तो उसे यजु श्रुतियां अन्तरिक्षस्थित सोमलोक में ले जाती है तदनंतर सोमलोक में विभूति का अनुभव कर वह फिर लौट आता है।
४० त्रिमात्राविशिष्ट औंकारोपासना का फल
किन्तु जो उपासक त्रिमात्राविशिष्ट 'ॐ' इस अक्षर द्वारा इस परम पुरुष की उपासना करता है वह तेजोमय सूर्य लोक को प्राप्त करता है। सर्प जिस प्रकार केंचुली से निकल आता है उसी प्रकार वह पापों से मुक्त हो जाता है। वह साम्श्रुतियों द्वारा ब्रह्मलोक में ले जाया जाता है और जीवनघन से भी उत्कृष्ट ह्रदय स्थित परमपुरुष का साक्षात्कार करता है।
४१ औंकार की तीन मात्राओं की विशेषता
ओंकार की तीनों मात्राएँ (पृथक-पृथक) रहने पर मृत्यु से युक्त है। वे (ध्यान-क्रिया में) प्रयुक्त होती है और परस्पर सम्बद्ध तथा अनविप्रयुक्ता (जिनका विपरीत प्रयोग न किया गया हो - ऐसी) हैं। इस प्रकार बाह्य (जागृत), आभ्यंतर (सुषुप्ति) और माध्यम (स्वप्नस्थानीय) क्रियाओं में उनका सम्यक प्रयोग किया जाने पर ज्ञाता पुरुष विचलित नहीं होता।
४२ ऋगादि वेद और औंकार से प्राप्त होने वाले लोक
साधक ऋग्वेद द्वारा इस लोक को, यजुर्वेद द्वारा अन्तरिक्ष को और सामवेद द्वारा उस लोक को प्राप्त होता है जिसे विज्ञजन जानते हैं। तथा उस ओंकाररूप आलंबन के द्वारा ही विद्वान् उस लोक को प्राप्त होता है जो शांत अजर, अमर, अभय एवं सबसे पर (श्रेष्ठ) है।
तदन्तर उन पिप्पलाद मुनि ने शिबिपुत्र सत्यकाम ने पूछा - 'भगवन! मनुष्यों में जो पुरुष प्राणप्रयाणपर्यंत इस ओंकार का चिंतन करें, वह उस (ओंकरोपासना) से किस लोक को जीत लेता है?
३७ ओंकारोपासक से प्राप्तव्य पर अथवा अपर ब्रह्म
उस से उस पिप्पलाद ने कहा-हे सत्यकाम! यह जो ओंकार है वही निश्चय पर और अपर ब्रह्म है। अतः विद्वान इसी के आश्रय से उनमें से किसी एक (ब्रह्म) को प्राप्त हो जाता है।
३८ एकमात्राविशिष्ट औंकरोपासना का फल
वह यदि एक मात्राविशिष्ट ओंकार का ध्यान करता है तो उसी से बोध को प्राप्त कर तुरंत ही संसार को प्राप्त हो जाता है। उसे ऋचाएं मनुष्यलोक में ले जाती है। वहां वह ताप, ब्रह्मचर्य और श्रद्धा से संपन्न होकर महिमा का अनुभव करता है।
३९ द्विमात्राविशिष्ट औंकारोपासना का फल
और यदि वह द्विमात्राविशिष्ट ओंकार के छंटन द्वारा मन से एकतत्व को प्राप्त हो जाता है तो उसे यजु श्रुतियां अन्तरिक्षस्थित सोमलोक में ले जाती है तदनंतर सोमलोक में विभूति का अनुभव कर वह फिर लौट आता है।
४० त्रिमात्राविशिष्ट औंकारोपासना का फल
किन्तु जो उपासक त्रिमात्राविशिष्ट 'ॐ' इस अक्षर द्वारा इस परम पुरुष की उपासना करता है वह तेजोमय सूर्य लोक को प्राप्त करता है। सर्प जिस प्रकार केंचुली से निकल आता है उसी प्रकार वह पापों से मुक्त हो जाता है। वह साम्श्रुतियों द्वारा ब्रह्मलोक में ले जाया जाता है और जीवनघन से भी उत्कृष्ट ह्रदय स्थित परमपुरुष का साक्षात्कार करता है।
४१ औंकार की तीन मात्राओं की विशेषता
ओंकार की तीनों मात्राएँ (पृथक-पृथक) रहने पर मृत्यु से युक्त है। वे (ध्यान-क्रिया में) प्रयुक्त होती है और परस्पर सम्बद्ध तथा अनविप्रयुक्ता (जिनका विपरीत प्रयोग न किया गया हो - ऐसी) हैं। इस प्रकार बाह्य (जागृत), आभ्यंतर (सुषुप्ति) और माध्यम (स्वप्नस्थानीय) क्रियाओं में उनका सम्यक प्रयोग किया जाने पर ज्ञाता पुरुष विचलित नहीं होता।
४२ ऋगादि वेद और औंकार से प्राप्त होने वाले लोक
साधक ऋग्वेद द्वारा इस लोक को, यजुर्वेद द्वारा अन्तरिक्ष को और सामवेद द्वारा उस लोक को प्राप्त होता है जिसे विज्ञजन जानते हैं। तथा उस ओंकाररूप आलंबन के द्वारा ही विद्वान् उस लोक को प्राप्त होता है जो शांत अजर, अमर, अभय एवं सबसे पर (श्रेष्ठ) है।