Akash Ganga Paying Guest (A/C) only for Girls, #1108, Sec 13, Kurukshetra-136118
अथर्ववेद
अथर्ववेद अर्थात आयुर्वेद -- नाम से ही ज्ञात होता है कि यह वेद उम्र से ताल्लुकात रखता है। आयु में वृद्धि के लिए और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने के लिए स्वस्थ्य का सही होना ही उचित है।
जीवेम शतं अर्थात सौ वर्ष का जीवन। पूर्व समय में व्यक्तियों का जीवन कम से कम १०० वर्ष होता था। इसका अर्थ यह नहीं कि यह आज के समय में संभव नहीं है, संभव है यदि सम भाव से अपनी इन्द्रियों पर काबू पाकर जीवन व्यतीत किया जाये और सीमित एवं संयमित भोजन किया जाये। आज के समय में जहाँ हर व्यक्ति जीभ के स्वाद के लिए कुछ भी खा जाने में सक्षम हो गया है वही असीमित व्यंजनों असमय शरीर में प्रवेश करने से शरीर की पाचन प्रणाली पर जिस प्रकार के प्रभाव देखे गए है उन्ही का जीता जगता प्रमाण है निरंतर अस्पतालों की वृद्धि। उम्र का कोई हिसाब ही नहीं रह गया है। कोई भी, कभी भी, किसी भी वजह से लुढक जाता है और जीता जागता, खेलता कूदता शरीर एक दम से निढाल हो लकड़ियों में लीन हो जाता है जैसे उसका कभी कोई वजूद ही न रहा हो।
ऐसे में इस वेद की आवश्यकता और महत्त्व भी बढ़ जाता है। हम यहाँ पर अथर्ववेद में लिखित हर बात तो आपके लिए सहज नहीं कर सकते क्योंकि इसमें कुल २० कांड, ७३०सूक्त एवं ५९८७ मन्त्र है और इसके महत्वपूर्ण विषय है - ब्रह्मज्ञान, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, जन्तर-तंत्र, टोना-टोटका आदि। हम विस्तार में जाने की अपेक्षा औषधि प्रयोग पर अपना ध्यान केन्द्रित कर अपने प्रिय पाठकों के लिए भारत में सहज उपलब्ध औषधियों से रोग निवारण विषय पर हर संभव जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास करेंगे।
जीवेम शतं अर्थात सौ वर्ष का जीवन। पूर्व समय में व्यक्तियों का जीवन कम से कम १०० वर्ष होता था। इसका अर्थ यह नहीं कि यह आज के समय में संभव नहीं है, संभव है यदि सम भाव से अपनी इन्द्रियों पर काबू पाकर जीवन व्यतीत किया जाये और सीमित एवं संयमित भोजन किया जाये। आज के समय में जहाँ हर व्यक्ति जीभ के स्वाद के लिए कुछ भी खा जाने में सक्षम हो गया है वही असीमित व्यंजनों असमय शरीर में प्रवेश करने से शरीर की पाचन प्रणाली पर जिस प्रकार के प्रभाव देखे गए है उन्ही का जीता जगता प्रमाण है निरंतर अस्पतालों की वृद्धि। उम्र का कोई हिसाब ही नहीं रह गया है। कोई भी, कभी भी, किसी भी वजह से लुढक जाता है और जीता जागता, खेलता कूदता शरीर एक दम से निढाल हो लकड़ियों में लीन हो जाता है जैसे उसका कभी कोई वजूद ही न रहा हो।
ऐसे में इस वेद की आवश्यकता और महत्त्व भी बढ़ जाता है। हम यहाँ पर अथर्ववेद में लिखित हर बात तो आपके लिए सहज नहीं कर सकते क्योंकि इसमें कुल २० कांड, ७३०सूक्त एवं ५९८७ मन्त्र है और इसके महत्वपूर्ण विषय है - ब्रह्मज्ञान, औषधि प्रयोग, रोग निवारण, जन्तर-तंत्र, टोना-टोटका आदि। हम विस्तार में जाने की अपेक्षा औषधि प्रयोग पर अपना ध्यान केन्द्रित कर अपने प्रिय पाठकों के लिए भारत में सहज उपलब्ध औषधियों से रोग निवारण विषय पर हर संभव जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास करेंगे।