षष्ठ प्रश्न
43 सुकेशा का प्रश्न - सोलह कलाओं वाला पुरुष कौन है?
तदनंतर उन पिप्पलादाचार्य से भरद्वाज के पुत्र सुकेश ने पूछा - "भगवन! कोसल देश के राजकुमार हिरण्यनाभ ने मेरे पास आकर यह प्रश्न पुछा था - 'भारद्वाज! क्या तू सोलह कलाओं वाले पुरुष को जानताहै ?' तब मैंने उस कुमार से कहा-'मैं इसे नहीं जानता; यदि मैं इसे जानता होता तो तुझे क्यों न बतलाता? जो पुरुष मथ्य भाषण करता है वह सब और से मूल सहित सूख जाता है; अतः मैं मिथ्या भाषण नहीं कर सकता।' तब वह चुपचाप रथ पर चढ़कर चला गया। सो अब मैं आपसे उस के विषय में पूछता हूँ कि वह पुरुष कहाँ है?
44 पिप्पलाद का उत्तर-वह पुरुष शरीर में स्थित है
उस से आचार्य पिप्पलाद ने कहा - 'हे सोम्य! जिस में इन सोलह कलाओं का प्रादुर्भाव होता है वह पुरुष इस शरीर के भीतर ही वर्तमान है।
45 ईक्षणपूर्वकसृष्टि
उसने विचार किया कि किस के उत्क्रमण करने पर मैं भी उत्क्रमण कर जाऊँगा और किस के स्थित रहने पर मैं स्थित रहूँगा?
46 सृष्टिक्रम
उस पुरुष ने प्राण को रचा; फिर प्राण से श्रद्धा, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी, इन्द्रिय, मन और अन्न को तथा अन्न से वीर्य, ताप मन्त्र, कर्म और लोकों में नाम को उत्पन्न किया।
47 नदी के दृष्टान से सम्पूर्ण जगत का पुरुषाश्रयत्वप्रतिपादन
वह [दृष्टान्त] इस प्रकार है - जिस प्रकार समुद्र की और बहती हुई ये नदियां समुद्र में पहुँच कर अस्त हो जाती है, उनके नाम-रूप नष्ट हो जाते हैं, और वे 'समुद्र' ऐसा कहकर ही पुकारी जाती है। इसी प्रकार इस सर्वद्रष्ट की ये सोलह कलायें, जिनका अधिष्ठान पुरुष ही है, उस पुरुष को प्राप्त होकर लीन हो जाती है। उनके नाम-रूप नष्ट हो जाते हैं और वे 'पुरुष' ऐसा कहकर ही पुकारी जाती है। वह विद्वान कलाहीन और अमर हो जाता है।
48 मरण-दुःख की निवृत्ति में परमात्म ज्ञान का उपयोग
जिसमें रथ की नाभि में अरों के सामान सब कलाएं आश्रित हैं, उस ज्ञातत्व पुरुष को तुम जानो; जिससे कि मृत्यु तुम्हें कष्ट न पहुंचा सके।
49 उपदेश का उपसंहार
तब उनसे उस (पिप्पलाद मुनि)-ने कहा - इस परब्रह्म को मैं इतना ही जानता हूँ। इससे अन्य और कुछ (ज्ञातव्य) नहीं है।
50 स्तुतिपूर्वक आचार्य की वंदना
तब उन्होंने उन की पूजा करते हुए कहा - आप तो हमारे पिता है जिन्होंने की हमें अविद्या के दुसरे पार पर पहुंचा दिया है; आप परमर्षि को हमारा नमस्कार है, नमस्कार है।
तदनंतर उन पिप्पलादाचार्य से भरद्वाज के पुत्र सुकेश ने पूछा - "भगवन! कोसल देश के राजकुमार हिरण्यनाभ ने मेरे पास आकर यह प्रश्न पुछा था - 'भारद्वाज! क्या तू सोलह कलाओं वाले पुरुष को जानताहै ?' तब मैंने उस कुमार से कहा-'मैं इसे नहीं जानता; यदि मैं इसे जानता होता तो तुझे क्यों न बतलाता? जो पुरुष मथ्य भाषण करता है वह सब और से मूल सहित सूख जाता है; अतः मैं मिथ्या भाषण नहीं कर सकता।' तब वह चुपचाप रथ पर चढ़कर चला गया। सो अब मैं आपसे उस के विषय में पूछता हूँ कि वह पुरुष कहाँ है?
44 पिप्पलाद का उत्तर-वह पुरुष शरीर में स्थित है
उस से आचार्य पिप्पलाद ने कहा - 'हे सोम्य! जिस में इन सोलह कलाओं का प्रादुर्भाव होता है वह पुरुष इस शरीर के भीतर ही वर्तमान है।
45 ईक्षणपूर्वकसृष्टि
उसने विचार किया कि किस के उत्क्रमण करने पर मैं भी उत्क्रमण कर जाऊँगा और किस के स्थित रहने पर मैं स्थित रहूँगा?
46 सृष्टिक्रम
उस पुरुष ने प्राण को रचा; फिर प्राण से श्रद्धा, आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी, इन्द्रिय, मन और अन्न को तथा अन्न से वीर्य, ताप मन्त्र, कर्म और लोकों में नाम को उत्पन्न किया।
47 नदी के दृष्टान से सम्पूर्ण जगत का पुरुषाश्रयत्वप्रतिपादन
वह [दृष्टान्त] इस प्रकार है - जिस प्रकार समुद्र की और बहती हुई ये नदियां समुद्र में पहुँच कर अस्त हो जाती है, उनके नाम-रूप नष्ट हो जाते हैं, और वे 'समुद्र' ऐसा कहकर ही पुकारी जाती है। इसी प्रकार इस सर्वद्रष्ट की ये सोलह कलायें, जिनका अधिष्ठान पुरुष ही है, उस पुरुष को प्राप्त होकर लीन हो जाती है। उनके नाम-रूप नष्ट हो जाते हैं और वे 'पुरुष' ऐसा कहकर ही पुकारी जाती है। वह विद्वान कलाहीन और अमर हो जाता है।
48 मरण-दुःख की निवृत्ति में परमात्म ज्ञान का उपयोग
जिसमें रथ की नाभि में अरों के सामान सब कलाएं आश्रित हैं, उस ज्ञातत्व पुरुष को तुम जानो; जिससे कि मृत्यु तुम्हें कष्ट न पहुंचा सके।
49 उपदेश का उपसंहार
तब उनसे उस (पिप्पलाद मुनि)-ने कहा - इस परब्रह्म को मैं इतना ही जानता हूँ। इससे अन्य और कुछ (ज्ञातव्य) नहीं है।
50 स्तुतिपूर्वक आचार्य की वंदना
तब उन्होंने उन की पूजा करते हुए कहा - आप तो हमारे पिता है जिन्होंने की हमें अविद्या के दुसरे पार पर पहुंचा दिया है; आप परमर्षि को हमारा नमस्कार है, नमस्कार है।