ब्रह्म पुराण
ब्रह्मपुराण को गणना की दष्ष्टि से प्रथम माना जाता है। इस पुराण में साकार ब्रह्म की उपासना का विधान है। ब्रह्मपुराण में भगवान श्रीकष्ष्ण को ब्रह्म स्वरूप माना गया है। उनके चरित्र का निरूपण होने के कारण यह पुराण ब्रह्म पुराण कहा जाता है। ब्रह्म पुराण में कथा वक्ता स्वयं ब्रह्माजी एवं श्रोता मरीचि ऋषि हैं। सूर्य की उपासना इस पुराण का प्रतिपाद्य विषय है। ब्रह्मपुराण ब्रह्ममयी है तथा सत् चित् आनन्दस्वरूप है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्रदान करने वाला है। करने वाला यह पुराण वेदतुल्य है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ ब्रह्मपुराण की कथा का श्रवण करता है वह बिष्णुलोक को प्राप्त करता है।
इदं यः श्रद्धया नित्यमं पुराणं वेद सम्मितम्।
सम्पठेतच्छष्णु यान्मत्र्यः स याति भवनं हरेः।। (ब्रह्मपुराण)
ब्रह्मपुराण में सर्वप्रथम सष्ष्टि की उत्पत्ति एवं महाराज पष्थु की पावन चरित्र की कथा वर्णित है। राजा पष्थु ने इस पष्थ्वी का दोहन कर अन्नादि पदार्थों को उत्पन्न कर प्राणियों की रक्षा की। तभी इस भू-धरा का नाम पष्थ्वी पड़ा। ब्रह्मपुराण में सूर्यवंश का विस्तष्त वर्णन तदन्तर चन्द्र वंश का विस्तष्त वर्णन एवं भगवान कष्ष्ण के चरित्र का विस्तार से वर्णन है। ब्रह्म पुराण के अनुसार मनुष्य यदि परहित के लिये अपना सर्वस्व दान करता है तो उसे भगवान के दर्शन अवश्य होते हैं।
एक कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठोर तपस्या कर रही थी तभी उन्हें सरोवर में पानी में डूबते हुये एक बालक की करूण पुकार सुनायी पड़ी, जिसे ग्राह ने पकड़ रखा था। माँ पार्वती दौड़कर वहाँ पहुँची तो देखा बालक ग्राह के मुँह में पड़ा थर-थर काँप रहा था। पार्वती जी ने ग्राह से प्रार्थना की कि वह इस बालक को छोड़ दे। ग्राह ने माँ पार्वती से कहा, देखो, भगवान ने मेरे आहार के लिये यह नियम बनाया है कि छठे दिन जो भी तुम्हारे पास आये उसे तुम खा लेना। आज विधाता ने इसे स्वयं मेरे पास भेजा है, मैं इसे नहीं छोड़ सकता। पार्वती जी बोली ग्राह तुम इस बालक को छोड़ दो। मैं तुम्हें अपनी तपस्या का पूरा पुण्य देती हूँ। यह सुनकर ग्राह मान गया। माँ पार्वती ने संकल्प कर अपनी पूरी तपस्या ग्राह को दे दी। तपस्या का फल पाते ही ग्राह सूर्य की तरह प्रकाशमान हो उठा और कहने लगा, देवी तुम अपनी तपस्या वापस ले लो। मैं तुम्हारे कहने पर इस बालक को छोड़ देता हूँ। लेकिन पार्वती जी ने उसे स्वीकार नहीं किया। बच्चे को बचाकर पार्वती जी बड़ी प्रसन्न और सन्तुष्ट थी। आश्रम में आकर फिर से तपस्या में बैठ गयी। तभी भगवान शंकर प्रकट हो गये। और कहने लगे, देवी तुम्हें अब तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। जो तपस्या का फल तुमने ग्राह को दिया वह तुमने मुझे ही अर्पित की थी जिसका फल अब अनन्त गुना हो गया है।
ब्रह्मपुराण सुनने का फल:-
जो व्यक्ति भगवान के बिष्णु के चरणों में मन लगाकर ब्रह्मपुराण की कथा सुनते हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वह इस लोक में सुखों को भोगकर स्वर्ग में भी दिव्य सुखों का अनुभव करता है। तत्पश्चात् भगवान बिष्णु के निर्मल पद को प्राप्त करता है। ब्रह्मपुराण वेदतुल्य है तथा सभी वर्णों के लोग इसका श्रवण कर सकते हैं। इस श्रेष्ठ पुराण के श्रवण करने पर मनुष्य आयु, कीर्ति, धन, धर्म, विद्या को प्राप्त करता है। इसलिये मनुष्य को जीवन में एक बार इस गोपनीय पुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिये।
ब्रह्मपुराण करवाने का मुहुर्त:-
ब्रह्मपुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। ब्रह्मपुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन ब्रह्मपुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
ब्रह्मपुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
ब्रह्मपुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में ब्रह्मपुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी ब्रह्मपुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मपुराण करने के नियम:-
ब्रह्मपुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। ब्रह्मपुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
इदं यः श्रद्धया नित्यमं पुराणं वेद सम्मितम्।
सम्पठेतच्छष्णु यान्मत्र्यः स याति भवनं हरेः।। (ब्रह्मपुराण)
ब्रह्मपुराण में सर्वप्रथम सष्ष्टि की उत्पत्ति एवं महाराज पष्थु की पावन चरित्र की कथा वर्णित है। राजा पष्थु ने इस पष्थ्वी का दोहन कर अन्नादि पदार्थों को उत्पन्न कर प्राणियों की रक्षा की। तभी इस भू-धरा का नाम पष्थ्वी पड़ा। ब्रह्मपुराण में सूर्यवंश का विस्तष्त वर्णन तदन्तर चन्द्र वंश का विस्तष्त वर्णन एवं भगवान कष्ष्ण के चरित्र का विस्तार से वर्णन है। ब्रह्म पुराण के अनुसार मनुष्य यदि परहित के लिये अपना सर्वस्व दान करता है तो उसे भगवान के दर्शन अवश्य होते हैं।
एक कथा के अनुसार पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिये कठोर तपस्या कर रही थी तभी उन्हें सरोवर में पानी में डूबते हुये एक बालक की करूण पुकार सुनायी पड़ी, जिसे ग्राह ने पकड़ रखा था। माँ पार्वती दौड़कर वहाँ पहुँची तो देखा बालक ग्राह के मुँह में पड़ा थर-थर काँप रहा था। पार्वती जी ने ग्राह से प्रार्थना की कि वह इस बालक को छोड़ दे। ग्राह ने माँ पार्वती से कहा, देखो, भगवान ने मेरे आहार के लिये यह नियम बनाया है कि छठे दिन जो भी तुम्हारे पास आये उसे तुम खा लेना। आज विधाता ने इसे स्वयं मेरे पास भेजा है, मैं इसे नहीं छोड़ सकता। पार्वती जी बोली ग्राह तुम इस बालक को छोड़ दो। मैं तुम्हें अपनी तपस्या का पूरा पुण्य देती हूँ। यह सुनकर ग्राह मान गया। माँ पार्वती ने संकल्प कर अपनी पूरी तपस्या ग्राह को दे दी। तपस्या का फल पाते ही ग्राह सूर्य की तरह प्रकाशमान हो उठा और कहने लगा, देवी तुम अपनी तपस्या वापस ले लो। मैं तुम्हारे कहने पर इस बालक को छोड़ देता हूँ। लेकिन पार्वती जी ने उसे स्वीकार नहीं किया। बच्चे को बचाकर पार्वती जी बड़ी प्रसन्न और सन्तुष्ट थी। आश्रम में आकर फिर से तपस्या में बैठ गयी। तभी भगवान शंकर प्रकट हो गये। और कहने लगे, देवी तुम्हें अब तपस्या करने की आवश्यकता नहीं है। जो तपस्या का फल तुमने ग्राह को दिया वह तुमने मुझे ही अर्पित की थी जिसका फल अब अनन्त गुना हो गया है।
ब्रह्मपुराण सुनने का फल:-
जो व्यक्ति भगवान के बिष्णु के चरणों में मन लगाकर ब्रह्मपुराण की कथा सुनते हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वह इस लोक में सुखों को भोगकर स्वर्ग में भी दिव्य सुखों का अनुभव करता है। तत्पश्चात् भगवान बिष्णु के निर्मल पद को प्राप्त करता है। ब्रह्मपुराण वेदतुल्य है तथा सभी वर्णों के लोग इसका श्रवण कर सकते हैं। इस श्रेष्ठ पुराण के श्रवण करने पर मनुष्य आयु, कीर्ति, धन, धर्म, विद्या को प्राप्त करता है। इसलिये मनुष्य को जीवन में एक बार इस गोपनीय पुराण की कथा अवश्य सुननी चाहिये।
ब्रह्मपुराण करवाने का मुहुर्त:-
ब्रह्मपुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। ब्रह्मपुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन ब्रह्मपुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
ब्रह्मपुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
ब्रह्मपुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में ब्रह्मपुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी ब्रह्मपुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मपुराण करने के नियम:-
ब्रह्मपुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। ब्रह्मपुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।