Shiv Puran - शिवपुराण के श्रवण से देवराज को शिवलोक की प्राप्ति तथा चन्चुला का पाप से भय एवं संसार से वैराग्य
श्री शौनकजी ने कहा - महाभाग सूतजी! आप धन्य हैं, परमार्थ तत्त्व के ज्ञाता हैं, आप धन्य हैं, आपने कृपा करके हम लोगों को यह बडी अद्भुत एवं दिव्य कथा सुनायी है। भूतल पर इस कथा के समान कल्याण का सर्व श्रेष्ठ साधन कोई नहीं है, यह बात हमने आज आप की कृपा से निश्चयपूर्वक समझ ली है। सूतजी! कलियुग मे इस कथा के द्वारा कौन-कौन से पापी शुद्ध होते है? उन्हें कृपा करके बताइये और इस जगत को कृतार्थ कीजिये।
सूतजी बोले - मुने! जो मनुष्य पापी, दुराचारी, खल तथा काम-क्रोध आदि मे निरन्तर डूबे रहने वाला है, वे भी इस पुराण के श्रवण - पठन से अवश्य ही शुद्ध हो जाते है। इसी विषय मे जानकार मुनि इस प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं, जिसके श्रवण मात्र से पापों का पुर्णतया नाश हो जाता है।
पहले की बात है, कहीं किरातों के नगर मे एक ब्राह्मण रहता था, जो ज्ञान मे अत्यन्त दुर्बल, दरिद्र, रस बेचने वाला तथा वैदिक धर्म से विमुख था। वह स्नान - संध्या आदि कर्मों से भ्रष्ट हो गया था और वैश्यवृत्ति मे तत्पर रहता था। उसका नाम था देवराज। वह अप्ने ऊपर विश्वास करने वाले लोगों को ठगा करता था। उसने ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों, शूद्रों तथा दूसरों को भी अनेक बहाने से मारकर उन - उन का धन हडप लिया था। परन्तु उस पापी का थोडा सा भी धन कभी धर्म के काम मे नहीं लगा था। वह वेश्यागामी तथा सब प्रकार से आचारभ्रष्ट था।
एक दिन घूमता - घमाता वह देवयोग से प्रतिष्ठानपुर (झूसी - प्रयाग) मे जा पहुंचा। वहां उसने एक शिवालय देखा, जहां बहुत से साधु - महात्मा एकत्र हुये थे। देवराज उस शिवालय मे ठहर गया। किंतु वहां उस ब्रह्मण को ज्वर आ गया। उस ज्वर से उस को बहुत पीडा होने लगी। वहां एक ब्राह्मण देवता शिवपुराण की कथा सुना रहे थे। ज्वर मे पड़ा हुआ देवराज ब्राह्मण के मुखारविन्द से निकली हुई उस शिवकथा को निरन्तर सुनता रहा। एक माह के बाद वह ज्वर से अत्यन्त पीड़ित होकर चल बसा। यमराज के दूत आये और उसे पाशो से बांधकर बलपूर्वक यमपुरी मे ले गये। इतने मे ही शिवलोक से भगवान शिव के पार्षदगण आ गये। उनके गौर अंग कर्पूर के समान उज्जवल थे, हाथ त्रिशूल से सुशोभित हो रहे थे, उनके सम्पूर्ण अंग भस्म से उद्भासित थे और रुद्राक्ष की मालाएं उनके शरीर की शोभा बढा रही थी। वे सब - के - सब क्रोधपूर्वक यमपुरी मे गये और यमराज के दूतों को मार-पीट कर, बारम्बार धमकाकर उन्होंने देवराज को उनके चंगुल से छुडा लिया और अत्यन्त अद्भुत विमान पर बिठाकर जब वे शिवदूत कैलाश जाने को उद्यत हुये, उस समय यमपुरी मे बडा भारी कोलाहल मच गया। उस कोलाहल को सुनकर धर्मराज अपने भवन से बाहर आये। साक्षात दूसरे रुद्रों के समान प्रतीत होने वाले उन चारों दूतों को देख कर धर्मज्ञ धर्मराज ने उनका विधिपूर्वक पूजन किया और ज्ञानदृष्टि से देखकर सारा वृतान्त जान लिया। उन्होंने भय के कारण भगवान शिव के उन महात्मा दूतों से कोइ बात नही की, उलटे उन सबकी पूजा एवं प्रार्थना की। तत्पश्चात वे शिवदूत कैलाश को चले गये और वहां पहुंचकर उन्होने उस ब्राह्मण को दया सागर साम्ब शिव के हाथों में दे दिया।
शौनकजी ने कहा - महाभाग सूतजी! आप सर्वज्ञ हैं। महामते! आपके कृपा प्रसाद से मै बारम्बार कृतार्थ हुआ। इस इतिहास को सुनकर मेरा मन अत्यन्त आनन्द मे निमग्न हो रहा है। अत: अब भगवान शिव मे प्रेम बढाने वाली शिवसम्बन्धिनी दूसरी कथा को भी कहिये।
श्री सूतजी बोले - शौनक! सुनो, मै तुम्हारे सामने गोपनीय कथावस्तु का भी वर्णन करुंगा; क्योंकि तुम शिवभक्तों में अग्रगण्य तथा वेदवेत्ताओं मे श्रेष्ठ हो। समुद्र के निकटवर्ती प्रदेश मे एक वाष्कल नामक ग्राम है, जहां वैदिक धर्म से विमुख महापापी द्विज निवास करते हैं। वे सभी कुटिल वृत्तिवाले हैं। किसानी करते और भांति-भांति के घातक अस्त्र-शस्त्र रखते हैं। वे व्यभिचारी और खल हैं। ज्ञान, वैराग्य तथा सद्धर्म का सेवन ही मनुष्य के लिये परम पुरुषार्थ है - इस बात को वे बिलकुल नहीं जानते है। वे सभी पशुबुद्धि वाले हैं। (जहां के द्विज ऎसे हों, वहां के अन्य वर्णों के विषय मे क्या कहा जाय।) अन्य वर्णों के लोग भी उन्ही की भांति कुत्सित विचार रखने वाले, स्वधर्म विमुख एवं खल है; वे सदा कुकर्म मे लगे रहते है और नित्य विषय भोगों में ही डूबे रहते हैं। वहां की सब स्त्रियां भी कुटिल स्वभाव की, स्वेच्छाचारिणी, पापासक्त, कुत्सित विचार वाली और व्यभिचारिणी हैं। वे सद्व्यवहार तथा सदाचार से सर्वथा शून्य है। इस प्रकार वहां दुष्टों का ही निवास है।
उस वाष्कल नामक ग्राम मे किसी समय एक बिन्दुग नामधारी ब्राह्मण रहता था, वह बडा अधम था। दुरात्मा और महापापी था। यद्यपि उसकी स्त्री बडी सुन्दर थी, तो भी वह कुमार्ग पर ही चलता था। उसकी पत्नी का नाम चंचुला था; वह सदा उत्तम धर्म के पालन मे लगी रहती थी, तो भी उसे छोडकर वह दुष्ट ब्राह्मण वेश्यागामी हो गया था। इस तरह कुकर्म मे लगे हुये उस बिन्दुग के बहुत वर्ष बीत गये। उसकी स्त्री चंचुला काम से पीडित होने पर भी स्वधर्म नाश के भय से क्लेश सह कर भी धर्म से भ्रष्ट नही हुइ। किंतु पति के आचरण से प्रभावित हो आगे चलकर वह स्त्री दुराचारिणी हो गयी।
इस तरह दुराचार मे डूबे हुये उन मूढ चित्तवाले पति-पत्नी का बहुत सा समय व्यर्थ हो गया। उसके बाद शूद्रजातीय वेश्या का पति बना हुआ वह दूषित बुद्धिवाला दुष्ट ब्राह्मण बिन्दुग समयानुसार मृत्यु को प्राप्त हो गया और नरक मे जा पडा। बहुत दिनों तक नरक के दुख भोगकर वह मूढ्बुद्धि पापी विन्ध्यपर्वत पर भयंकर पिशाच हुआ। इधर, उस दुराचारी पति बिन्दुग के मर जाने पर वह मूढहृदया चंचुला बहुत समय तक पुत्रों के साथ अपने घर मे ही रही।
एक दिन दैवयोग से किसी पुण्य पर्व के आने पर वह स्त्री भाई-बन्धुओ के साथ गोकर्ण क्षेत्र मे गयी। तीर्थ यात्रियों के संग से उसने भी उस समय जाकर किसी तीर्थ के जल मे स्नान किया। फिर वह साधारणतया (मेला देखने की दृष्टि से) बंधुजनों के साथ यत्र-तत्र घूमने लगी। घूमती-घमाती किसी देवमन्दिर मे गयी और वहां उसने दैवज्ञ ब्राह्मण के मुख से भगवान शिव की परम पवित्र एवम मंगलकारिणी उत्तम पौराणिक कथा सुनी। कथावाचक ब्राह्मण कह रहे थे कि 'जो स्त्रियां परपुरुषों के साथ व्यभिचार करती है, वे मरने के बाद जब यमलोक मे जाती है, तब यमराज के दूत उनकी योनि मे तपे हुये लोहे का परिध डालते है। पौराणिक ब्राह्मण के मुख से यह वैराग्य बढाने वाली कथा सुनकर चंचुला भय से व्याकुल हो वहां कांपने लगी। जब कथा समाप्त हुई और सुनने वाले सब लोग वहां से बाहर चले गये, तब वह भयभीत नारी एकान्त में शिवपुराण की कथा बांचने वाले उन ब्राह्मण देवता से बोली।
चंचुला ने कहा - ब्रह्मन्! मैं अपने धर्म को नहीं जानती थी। इसलिये मेरे द्वारा बड़ा दुराचार हुआ है। स्वामिन्! मेरे ऊपर अनुपम कृपा करके आप मेरा उद्धार कीजिये। आज आपके वैराग्य - रस से ओत-प्रोत इस प्रवचन को सुनकर मुझे बड़ा भय सा लग रहा है। मैं कांप उठी हूं और मुझे इस सन्सार से वैराग्य हो गया है। मुझ मूढ़ चित्तवाली पापिनी को धिक्कार है। मैं सर्वथा निन्दा के योग्य हूं। कुत्सित विष्यों मे फंसी हूं और अपने धर्म से विमुख हो गयी हूं। हाय! न जाने किस-किस घोर कष्टदायक दुर्गति मे मुझे जाना पडे़गा और वहां कौन बुद्धिमान पुरुष कुमार्ग में मन लगाने वाली मुझ पापिनी का साथ देगा। मृत्युकाल मे उन भयंकर यमदूतों को मैं कैसे देखूंगी? जब वे बलपूर्वक मेरे गले मे फंदे डालकर मुझे बांधेंगे, तब मैं कैसे धीरज धारण कर सकूंगी