स्कन्ध पुराण
पुराणों में स्कन्ध पुराण सबसे बड़ा है। शिव पुत्र कार्तिकेय का ही नाम स्कन्ध है। स्कन्ध का शाब्दिक अर्थ है क्षरण या विनाश। भगवान शिव संहार के देवता हैं। उनके पुत्र कार्तिकेय को संहारक शस्त्र अथवा शक्ति के रूप में जाना जाता है। तारकासुर वध के लिये ही इनका जन्म हुआ है। स्कन्ध पुराण में 81 हजार श्लोक हैं एवं यह 7 खण्डों में विभाजित है।
1. माहेश्वर खण्ड, 2. वैष्णव खण्ड, 3. ब्रह्म खण्ड, 4. काशी खण्ड, 5. रेवा खण्ड,
6. ताप्ति खण्ड, 7. प्रभास खण्ड
स्कन्ध पुराण वस्तुतः शैव सम्प्रदाय का पुराण है। लेकिन इसमें ब्रह्मा एवं विष्णु जी का भी विषद वर्णन है। शिव को विष्णुजी का ही रूप बताया गया है। विष्णु एवं शिव में कोई अन्तर नहीं
यथा शिवस्तथा विष्णु यथा विष्णुस्तथा शिवः
अन्तरं शिव विष्णोष्च मनागपे न विद्यते (स्कन्ध पुराण)
इस पावन पुराण में शिव लिंग की महिमा का वर्णन आया है कि ब्रह्मा एवं विष्णु दोनों शिवलिंग के आदि व अन्त का पता व रहस्य जानने के लिये ढँूड करते हैं लेकिन सात आकाश तथा सात पाताल पार करने के बाद भी वे इस रहस्य को नहीं जान पाये। जब वे दोनों वापिस लौटे तो ब्रह्माजी ने आकर झूठ कहा कि मैंनें शिवलिंग के आदि व अन्त का मापन करके आ गया हूँ और उनके दो झूठे गवाह बने सुरभि गाय व केतकी का फूल। इस झूठ के फलस्वरूप ब्रह्माजी सुरभि गाय एवं केतकी के पुष्प को श्राप मिला और इनकी पूजा कहीं नहीं होती। सुरभि गाय ने जिस मुख से झूठ बोला वह मुख नहीं पूजा जाता (गाय के चरण पूजे जाते हैं, मुख नहीं) एवं केतकी का पुष्प भी शिवलिंग पर चढ़ाने के लिये वर्जित माना जाता है।
कलयुग में दान का बहुत बड़ा महत्व है। मनुष्य को अपने धनोर्पाजन में से दशमांष अवश्य दान करना चाहिये। दान करने से गृहस्थ जीवन में सदबुद्धि आती है। स्कन्ध पुराण मेें दान एवं त्याग की महिमा को बड़े सुन्दर ढंग से वर्णित किया गया है।
द्विहेतु षडधिष्ठानं षड्गं च ,िपाक युक।
चतुष्प्रकारं त्रिवधं त्रिनाष दानमुच्यते।।
मनुष्य को दान अवश्य करना चाहिये। दान थोड़ा होना या बहुत हो, इतना महत्व नहीं, जितना कि श्रद्धा एवं शक्ति का है। यदि कुबेर भी बिना श्रद्धा के दान करता है तो वह भी निष्फल हो जाता है। मनुष्य को अपने पालन, अपने परिवार का भली-प्रकार से पोषण के पश्चात् जो शेष रहता है, वही धन दान करना चाहिये। यदि परिवार के लोग दुःख में जीवन निर्वाह कर रहे हों और घर का मुखिया या प्रमुख किसी को दान करे तो वह दान भी निष्फल हो जाता है।
इस पुराण का आकार बहुत विशाल, दिव्य एवं चमत्कृत है। स्कन्ध पुराण में बद्रिकाश्रम, अयोध्या, जनकपुरी, कन्या कुमारी आदि पूज्य तीर्थों का सुन्दर दर्शन कराया गया है। गौ-ब्राह्मण, पीपल, वट वृक्ष आदि की महिमा भी इस पुराण में वर्णित है। आज घर-घर में होने वाली प्रचलित भगवान सत्यनारायण की कथा भी इसी स्कन्ध पुराण की कथा है। इन दिव्य कथाओं के श्रवण करने से जीवन सुधरता है, तथा इह लोक तथा परलोक दोनों में श्रेय एवं जीवन में शान्ति मिलती है।
स्कन्ध पुराण सुनने का फल:-
परम पिता का नाम यद्यपि जगत को पावन करने वाला है लेकिन धर्म के विरूद्ध कार्य करने वाले प्राणी को वो पवित्र नहीं करती। जैसे-औषधि रोगों की निवृत्ति तो अवश्य करती है लेकिन उसके साथ-साथ सुपाच्य सेवन एवं कुपत्य का त्याग भी आवश्यक है।
‘‘जगतपवित्रं हरिनामधेयं क्रियाविहिनं न पुनातिजन्तुम’’
यदि मनुष्य श्रद्धा एवं भक्ति के साथ स्कन्ध पुराण का श्रवण करे तो उसका जीवन भयमुक्त हो जाता है। धन, पद एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त करते हुये सर्वत्र उसकी कीर्ति फैलती है। हरि नाम स्मरण करने से उसका कल्याण हो जाता है एवं संसार के सभी ऐश्वर्यों को भोगते हुये अन्त में परमात्मा के धाम में वास करता है।
1. माहेश्वर खण्ड, 2. वैष्णव खण्ड, 3. ब्रह्म खण्ड, 4. काशी खण्ड, 5. रेवा खण्ड,
6. ताप्ति खण्ड, 7. प्रभास खण्ड
स्कन्ध पुराण वस्तुतः शैव सम्प्रदाय का पुराण है। लेकिन इसमें ब्रह्मा एवं विष्णु जी का भी विषद वर्णन है। शिव को विष्णुजी का ही रूप बताया गया है। विष्णु एवं शिव में कोई अन्तर नहीं
यथा शिवस्तथा विष्णु यथा विष्णुस्तथा शिवः
अन्तरं शिव विष्णोष्च मनागपे न विद्यते (स्कन्ध पुराण)
इस पावन पुराण में शिव लिंग की महिमा का वर्णन आया है कि ब्रह्मा एवं विष्णु दोनों शिवलिंग के आदि व अन्त का पता व रहस्य जानने के लिये ढँूड करते हैं लेकिन सात आकाश तथा सात पाताल पार करने के बाद भी वे इस रहस्य को नहीं जान पाये। जब वे दोनों वापिस लौटे तो ब्रह्माजी ने आकर झूठ कहा कि मैंनें शिवलिंग के आदि व अन्त का मापन करके आ गया हूँ और उनके दो झूठे गवाह बने सुरभि गाय व केतकी का फूल। इस झूठ के फलस्वरूप ब्रह्माजी सुरभि गाय एवं केतकी के पुष्प को श्राप मिला और इनकी पूजा कहीं नहीं होती। सुरभि गाय ने जिस मुख से झूठ बोला वह मुख नहीं पूजा जाता (गाय के चरण पूजे जाते हैं, मुख नहीं) एवं केतकी का पुष्प भी शिवलिंग पर चढ़ाने के लिये वर्जित माना जाता है।
कलयुग में दान का बहुत बड़ा महत्व है। मनुष्य को अपने धनोर्पाजन में से दशमांष अवश्य दान करना चाहिये। दान करने से गृहस्थ जीवन में सदबुद्धि आती है। स्कन्ध पुराण मेें दान एवं त्याग की महिमा को बड़े सुन्दर ढंग से वर्णित किया गया है।
द्विहेतु षडधिष्ठानं षड्गं च ,िपाक युक।
चतुष्प्रकारं त्रिवधं त्रिनाष दानमुच्यते।।
मनुष्य को दान अवश्य करना चाहिये। दान थोड़ा होना या बहुत हो, इतना महत्व नहीं, जितना कि श्रद्धा एवं शक्ति का है। यदि कुबेर भी बिना श्रद्धा के दान करता है तो वह भी निष्फल हो जाता है। मनुष्य को अपने पालन, अपने परिवार का भली-प्रकार से पोषण के पश्चात् जो शेष रहता है, वही धन दान करना चाहिये। यदि परिवार के लोग दुःख में जीवन निर्वाह कर रहे हों और घर का मुखिया या प्रमुख किसी को दान करे तो वह दान भी निष्फल हो जाता है।
इस पुराण का आकार बहुत विशाल, दिव्य एवं चमत्कृत है। स्कन्ध पुराण में बद्रिकाश्रम, अयोध्या, जनकपुरी, कन्या कुमारी आदि पूज्य तीर्थों का सुन्दर दर्शन कराया गया है। गौ-ब्राह्मण, पीपल, वट वृक्ष आदि की महिमा भी इस पुराण में वर्णित है। आज घर-घर में होने वाली प्रचलित भगवान सत्यनारायण की कथा भी इसी स्कन्ध पुराण की कथा है। इन दिव्य कथाओं के श्रवण करने से जीवन सुधरता है, तथा इह लोक तथा परलोक दोनों में श्रेय एवं जीवन में शान्ति मिलती है।
स्कन्ध पुराण सुनने का फल:-
परम पिता का नाम यद्यपि जगत को पावन करने वाला है लेकिन धर्म के विरूद्ध कार्य करने वाले प्राणी को वो पवित्र नहीं करती। जैसे-औषधि रोगों की निवृत्ति तो अवश्य करती है लेकिन उसके साथ-साथ सुपाच्य सेवन एवं कुपत्य का त्याग भी आवश्यक है।
‘‘जगतपवित्रं हरिनामधेयं क्रियाविहिनं न पुनातिजन्तुम’’
यदि मनुष्य श्रद्धा एवं भक्ति के साथ स्कन्ध पुराण का श्रवण करे तो उसका जीवन भयमुक्त हो जाता है। धन, पद एवं प्रतिष्ठा को प्राप्त करते हुये सर्वत्र उसकी कीर्ति फैलती है। हरि नाम स्मरण करने से उसका कल्याण हो जाता है एवं संसार के सभी ऐश्वर्यों को भोगते हुये अन्त में परमात्मा के धाम में वास करता है।