कूर्म पुराण
पुराण साहित्य में गणना की दष्ष्टि कूर्म पुराण का 15वाँ स्थान है। यह श्रेष्ठ पुराण कूर्म धारी आदिदेव भगवान विष्णु द्वारा कहा गया है। कूर्म पुराण की कथा पापों का नाश करती है। इसमें परःब्रह्म का यथार्थ रूप में कीर्तन किया गया है यह पुराण तीर्थों में परम् तीर्थ, तपों में परम् तप, ज्ञानों में परम् ज्ञान और व्रतों में परम् व्रत है।
भगवान विष्णु ने कूर्मावतार अर्थात् कच्छप रूप में समुद्र मन्थन के समय मन्द्राचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण कर इन्द्रादि देवताओं को बाद में राजा इन्द्रद्युम्न को जो भक्तिज्ञान और मोक्ष का उपदेश दिया था, वही उपदेश ब्यास जी के शिष्य सूत जी ने नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादिक ऋषियों को सुनाया, वही कूर्म पुराण है।
यों तो भगवान के कई अवतार हुये हैं, उन अवतारों में भगवान का एक विशिष्ट अवतार कूर्म अवतार हुआ। उसकी संक्षिप्त कथा है - जब देवताओं और राक्षस दोनों अमष्त प्राप्ति के लिये समुद्र मन्थन को तैयार हुये तो सर्वप्रथम पष्थ्वी की समस्त औषधियों को समुद्र में डाला गया। मन्दरांचल पर्वत को मथनी बनाया गया और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर सिर की ओर दैत्यों नें और पूँछ की ओर देवताओं ने पकड़कर समुद्र मन्थन प्रारम्भ कर दिया। किन्तु अथाह सागर में मन्दराचल पर्वत डूबते हुये पाताल में चला गया। तब भगवान विष्णु ने कूर्म रूप (कछुए का स्वरूप) धारण कर उसे नीचे से ऊपर उठाया और थोड़ा अंश समुद्र से ऊपर रखकर स्वयं अपनी पीठ पर मन्दराचल पर्वत को मथानी के रूप में धारण कर लिया था। इस प्रकार से समुद्र मन्थन हुआ। जिसके फलस्वरूप कूर्म रूपी नारायण की कष्पा से समुद्र से पारिजात वष्क्ष, हरि चन्दन, कल्प वष्क्ष, कौस्तुभ मणी, धन्वन्तरी वैद्य, चन्द्रमा, कामधेनु, ऐरावत हाथी, उच्चैः श्रवा घोड़ा, शार्ङग धनुष, लक्ष्मी, रम्भा, शंख, वारूणी, कालकूट, अमष्त कलश ये चैदह रत्न निकले।
कूर्म पुराण में 18 हजार श्लोक थे जो 1-ब्राह्मी, 2-भागवती, 3-सौरी, 4-वैष्णवी इन चार संहिताओं में बँटा था। लेकिन वर्तमान में कूर्म पुराण की केवल ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है जिसमें 99 अध्याय व 6 हजार श्लोक हैं। इस बात का प्रमाण स्वयं कूर्म पुराण में है।
ब्राह्मी भागवती सौरी वैष्णवी च प्रर्कीतितः।
चतस्रः संहिताः पुण्या धर्म कामार्थ मोक्षदाः।।
इयं तु संहिता ब्राह्मी चतुर्वेदैश्च सम्मताः
भवन्ति षट् सहस्राणि श्लोकानामत्र सख्यया।। (कूर्म पुराण)
कूर्म पुराण में भगवान की दिव्य लीलाओं का अद्भुत वर्णन है। वामन अवतार, यद्ववंश वर्णन, भगवान कष्ष्ण की पुत्र प्राप्ति हेतु शिव तपस्या करना, शिवलिंग महात्म्य, वर्णाश्रम धर्म का विषद् वर्णन किया गया है। इसी प्रकार भगवान के स्वयंभु नारायण, विष्णु एवं महादेव आदि नामों की व्याख्या की गयी है। वही ब्रह्माजी की आयु का वर्णन, कालगणना, मन्वन्तर संकल्प आदि को विस्तार से बतायी गयी है तथा अन्त में प्रलय काल की महिमा का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त महापुराणों के सर्ग-प्रतिसर्ग इत्यादि पाँच मुख्य विषयों का पूर्ण विवेचन कूर्म पुराण में किया गया है।
कूर्म पुराण सुनने का फल:-
कूर्म पुराण को भगवान विष्णु ने स्वयं अपने मुख से कहा है। इसके श्रवण करने मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर अन्त में ब्रह्म लोक को जाता है। वैशाख मास में इस कथा का विशेष महत्व है। जो वैशाख मास में विधि-विधान से इस कथा का श्रवण करता है, वह इस लोक में सभी सुखों को भोग कर स्वर्ग में प्रचुर मात्रा में दिव्य सुखों को भोगता है। तत्पश्चात् इस लोक में पुनः ब्राह्मण वंश में जन्म लेता है। ब्राह्मणों को इस पुराण का श्रवण अवश्य करना चाहिये। द्विजातियों के श्राद्ध अथवा देव कार्यों में इस ब्राह्मी संहिता (कूर्म पुराण) को अवश्य सुनाना चाहिये। इसके पाठ करने एवं श्रवण करने से सभी दोषों से शुद्धि हो जाती है।
कूर्म पुराण करवाने का मुहुर्त:-
कूर्म पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। कूर्म पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन कूर्म पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
कूर्म पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
कूर्म पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में कूर्म पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी कूर्म पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
कूर्म पुराण करने के नियम:-
कूर्म पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। कूर्म पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
कूर्म पुराण में कितना धन लगता है?:-
इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन कूर्म पुराण में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से कूर्म पुराण को करना चाहिये।
‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
इस प्रकार कूर्म पुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।
भगवान विष्णु ने कूर्मावतार अर्थात् कच्छप रूप में समुद्र मन्थन के समय मन्द्राचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण कर इन्द्रादि देवताओं को बाद में राजा इन्द्रद्युम्न को जो भक्तिज्ञान और मोक्ष का उपदेश दिया था, वही उपदेश ब्यास जी के शिष्य सूत जी ने नैमिषारण्य तीर्थ में शौनकादिक ऋषियों को सुनाया, वही कूर्म पुराण है।
यों तो भगवान के कई अवतार हुये हैं, उन अवतारों में भगवान का एक विशिष्ट अवतार कूर्म अवतार हुआ। उसकी संक्षिप्त कथा है - जब देवताओं और राक्षस दोनों अमष्त प्राप्ति के लिये समुद्र मन्थन को तैयार हुये तो सर्वप्रथम पष्थ्वी की समस्त औषधियों को समुद्र में डाला गया। मन्दरांचल पर्वत को मथनी बनाया गया और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर सिर की ओर दैत्यों नें और पूँछ की ओर देवताओं ने पकड़कर समुद्र मन्थन प्रारम्भ कर दिया। किन्तु अथाह सागर में मन्दराचल पर्वत डूबते हुये पाताल में चला गया। तब भगवान विष्णु ने कूर्म रूप (कछुए का स्वरूप) धारण कर उसे नीचे से ऊपर उठाया और थोड़ा अंश समुद्र से ऊपर रखकर स्वयं अपनी पीठ पर मन्दराचल पर्वत को मथानी के रूप में धारण कर लिया था। इस प्रकार से समुद्र मन्थन हुआ। जिसके फलस्वरूप कूर्म रूपी नारायण की कष्पा से समुद्र से पारिजात वष्क्ष, हरि चन्दन, कल्प वष्क्ष, कौस्तुभ मणी, धन्वन्तरी वैद्य, चन्द्रमा, कामधेनु, ऐरावत हाथी, उच्चैः श्रवा घोड़ा, शार्ङग धनुष, लक्ष्मी, रम्भा, शंख, वारूणी, कालकूट, अमष्त कलश ये चैदह रत्न निकले।
कूर्म पुराण में 18 हजार श्लोक थे जो 1-ब्राह्मी, 2-भागवती, 3-सौरी, 4-वैष्णवी इन चार संहिताओं में बँटा था। लेकिन वर्तमान में कूर्म पुराण की केवल ब्राह्मी संहिता ही प्राप्त होती है जिसमें 99 अध्याय व 6 हजार श्लोक हैं। इस बात का प्रमाण स्वयं कूर्म पुराण में है।
ब्राह्मी भागवती सौरी वैष्णवी च प्रर्कीतितः।
चतस्रः संहिताः पुण्या धर्म कामार्थ मोक्षदाः।।
इयं तु संहिता ब्राह्मी चतुर्वेदैश्च सम्मताः
भवन्ति षट् सहस्राणि श्लोकानामत्र सख्यया।। (कूर्म पुराण)
कूर्म पुराण में भगवान की दिव्य लीलाओं का अद्भुत वर्णन है। वामन अवतार, यद्ववंश वर्णन, भगवान कष्ष्ण की पुत्र प्राप्ति हेतु शिव तपस्या करना, शिवलिंग महात्म्य, वर्णाश्रम धर्म का विषद् वर्णन किया गया है। इसी प्रकार भगवान के स्वयंभु नारायण, विष्णु एवं महादेव आदि नामों की व्याख्या की गयी है। वही ब्रह्माजी की आयु का वर्णन, कालगणना, मन्वन्तर संकल्प आदि को विस्तार से बतायी गयी है तथा अन्त में प्रलय काल की महिमा का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त महापुराणों के सर्ग-प्रतिसर्ग इत्यादि पाँच मुख्य विषयों का पूर्ण विवेचन कूर्म पुराण में किया गया है।
कूर्म पुराण सुनने का फल:-
कूर्म पुराण को भगवान विष्णु ने स्वयं अपने मुख से कहा है। इसके श्रवण करने मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर अन्त में ब्रह्म लोक को जाता है। वैशाख मास में इस कथा का विशेष महत्व है। जो वैशाख मास में विधि-विधान से इस कथा का श्रवण करता है, वह इस लोक में सभी सुखों को भोग कर स्वर्ग में प्रचुर मात्रा में दिव्य सुखों को भोगता है। तत्पश्चात् इस लोक में पुनः ब्राह्मण वंश में जन्म लेता है। ब्राह्मणों को इस पुराण का श्रवण अवश्य करना चाहिये। द्विजातियों के श्राद्ध अथवा देव कार्यों में इस ब्राह्मी संहिता (कूर्म पुराण) को अवश्य सुनाना चाहिये। इसके पाठ करने एवं श्रवण करने से सभी दोषों से शुद्धि हो जाती है।
कूर्म पुराण करवाने का मुहुर्त:-
कूर्म पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। कूर्म पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन कूर्म पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
कूर्म पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
कूर्म पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में कूर्म पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी कूर्म पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
कूर्म पुराण करने के नियम:-
कूर्म पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। कूर्म पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
कूर्म पुराण में कितना धन लगता है?:-
इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन कूर्म पुराण में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से कूर्म पुराण को करना चाहिये।
‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
इस प्रकार कूर्म पुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।