भारत का इतिहास
बहुत से विदेसी लुटेरे भारत आए और भारत की सभ्यता को मिटाने का प्रयास किया। इसमें उन्होने काफी हद तक सफलता भी हासिल की। भारत की अनेकों धरोहर नेस्तनाबूत कर भारतीय संस्कृति को नष्ट करने मे कोई कसर नहीं छोडी। वास्कोडिगामा से लेकर ब्रिटिश सेनिकों तक ने भारत को लूट के लिये इस्तेमाल किया। और भारत से प्रत्येक उस वस्तु को मिटा दिया गया जिस से लाखों वर्ष पुराने भारत की सभ्यता के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके। इसके बावजूद वैज्ञानिक आधार पर भारत का इतिहास लगभग 5000 साल पुराना माना गया है। सिन्धु घाटी सभ्यता, जिसका आरंभ काल 3300 ईसापूर्व से माना गया है। इस सभ्यता की भी लिपि अबतक सफलतापूर्वक पढ़ी नहीं जा सकी है। सिंधुघाटी सभ्यता पाकिस्तान और उससे सटे भारतीय प्रदेशों में फैली थी। पुरातत्त्व प्रमाणों के आधार पर 1900 ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का अक्स्मात पतन हो गया। 19वी शताब्दी के पाश्चात्य विद्वानों के प्रचलित दृष्टिकोणों के अनुसार आर्यों का एक वर्ग भारतीय उप महाद्वीप की सीमाओं पर 2000 ईसा पूर्व के आसपास पहुंचा और पहले पंजाब में बस गया, और यही ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना की गई। (हालांकि भारतीय ग्रन्थों की शब्दावली के अनुसार यह रचना करोंडो वर्ष पुर्व हुयी है लेकिन इसका कोइ भोगोलिक प्रमाण अभितक सामने नहीं आया है) आर्यों द्वारा उत्तर तथा मध्य भारत में एक विकसित सभ्यता का निर्माण किया, जिसे वैदिक सभ्यता भी कहते हैं। प्राचीन भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता प्रारंभिक सभ्यता है जिसका संबंध आर्यों से है। भोगोलिक तथ्यों के आधार पर इसका नाम आर्यों के साहित्य वेदों के नाम पर किया गया है। भोगोलिक शास्त्रियों एवं प्रमणिक तथ्यों के अनुसार आर्यों की भाषा संस्कृत थी और धर्म "वैदिक धर्म" या "सनातन धर्म" के नाम से प्रसिद्ध था, बाद में विदेशी आक्रांताओं द्वारा इस धर्म का नाम हिन्दू पड़ा।
वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित मानी जाती है। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल 2000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच का मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई ऎसे अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे है कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल भी 3000 ईसा पूर्व ही रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डीएनए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों मे से आज के पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन भी ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से 4000 साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी होगी।
ईसा पूर्व 7वीं और शुरूवाती 6वीं शताब्दी में जैन और बौद्ध सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। सम्राट अशोक (ईसापूर्व 265-241) इस काल का एक महत्वपूर्ण शासक था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैला हुआ था। लेकिन वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल शासक अधिक शक्तिशाली थे। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व 7वीं और शुरुवाती 6वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थी। अति महत्वपूर्ण गणराज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य और वैशाली के लिच्छवी गणराज्य थे। गणराज्यों के अलावा राजतंत्रीय राज्य भी थे, जिनमें से कौशाम्बी(वत्स), मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, चेदि और अवन्ति महत्वपूर्ण थे। इन राज्यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्यक्तियों के पास था, जिन्होंने राज्य विस्तार और पड़ोसी राज्यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्यात्मक राज्यों के तब भी स्पष्ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्यों का विस्तार हो रहा था। इसके बावजूद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया।
आठवीं सदी में सिंध पर अरब से आने वालों का अधिकार हो गया। यह इस्लामी थे। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क के भगोडे सत्तासीन हो गये थे। जिन्होंने अगले कई सालों तक भारत के विभिन्न हिस्सों में राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। 1556 में विजय नगर का पतन हुआ। सन् 1526 में मध्य एशिया से निर्वासित बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़लवंश के नाम से भारत की धरती पर स्थापना की जो 300वर्ष तक कायम रही। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार आरम्भ हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। क्योकिं उसने हिन्दुओं पर लगाया गया जज़िया टैक्स हटाया था। 1659 में औरंग़ज़ेब ने इस टैक्स को फ़िर से लागू कर दिया था। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने के लिये मजबूर किया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिक्खों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (1707) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डच, पुर्तगाली तथा फ्रांसिसि को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और 1847 के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी 1947 में मिली, लेकिन इसके लिये भारत के हिस्से कर बंगलादेश, पाकिस्तान, बर्मा आदि को अलग रास्ट्र का दर्जा दे दिया। 1947 के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है।
समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। सिंधु घाटी की लिपि, अशोक के शिलालेख, हेरोडोटस, फ़ा हियान, ह्वेन सांग, संगम साहित्य, मार्कोपोलो, संस्कृत लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में अल-बेरुनी और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियाँ हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं ।
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण 100,000 से 80,000 वर्ष पूर्व का है।। पाषाण युग (भीमबेटका, मध्य प्रदेश) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम 40,000 ई पू से 9000 ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने 9000 वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में सिन्धु घाटी सभ्यता 7000 ई पू विकसित हुई, जो 26वीं शताब्दी ईसा पूर्व और 20वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी| वैदिक सभ्यता का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से 4000 ई पू तक जाता है।
वैदिक सभ्यता सरस्वती नदी के तटीय क्षेत्र जिसमें आधुनिक भारत के पंजाब और हरियाणा राज्य आते हैं, में विकसित मानी जाती है। आम तौर पर अधिकतर विद्वान वैदिक सभ्यता का काल 2000 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच का मानते है, परन्तु नए पुरातत्त्व उत्खननों से मिले अवशेषों में वैदिक सभ्यता से संबंधित कई ऎसे अवशेष मिले है जिससे कुछ आधुनिक विद्वान यह मानने लगे है कि वैदिक सभ्यता भारत में ही शुरु हुई थी, आर्य भारतीय मूल के ही थे और ऋग्वेद का रचना काल भी 3000 ईसा पूर्व ही रहा होगा, क्योंकि आर्यो के भारत में आने का न तो कोई पुरातत्त्व उत्खननों पर अधारित प्रमाण मिला है और न ही डीएनए अनुसन्धानों से कोई प्रमाण मिला है। हाल ही में भारतीय पुरातत्व परिषद् द्वारा की गयी सरस्वती नदी की खोज से वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया है। हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया है, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता की 2600 बस्तियों मे से आज के पाकिस्तान में सिन्धु तट पर मात्र 265 बस्तियां थीं, जबकि शेष अधिकांश बस्तियां सरस्वती नदी के तट पर हैं, सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन भी ऋग्वेद में बार-बार आता है, यह आज से 4000 साल पूर्व भूगर्भी बदलाव की वजह से सूख गयी होगी।
ईसा पूर्व 7वीं और शुरूवाती 6वीं शताब्दी में जैन और बौद्ध सम्प्रदाय लोकप्रिय हुए। सम्राट अशोक (ईसापूर्व 265-241) इस काल का एक महत्वपूर्ण शासक था जिसका साम्राज्य अफगानिस्तान से मणिपुर तक और तक्षशिला से कर्नाटक तक फैला हुआ था। लेकिन वो सम्पूर्ण दक्षिण तक नहीं जा सका। दक्षिण में चोल शासक अधिक शक्तिशाली थे। संगम साहित्य की शुरुआत भी दक्षिण में इसी समय हुई। भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व 7वीं और शुरुवाती 6वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थी। अति महत्वपूर्ण गणराज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य और वैशाली के लिच्छवी गणराज्य थे। गणराज्यों के अलावा राजतंत्रीय राज्य भी थे, जिनमें से कौशाम्बी(वत्स), मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, चेदि और अवन्ति महत्वपूर्ण थे। इन राज्यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्यक्तियों के पास था, जिन्होंने राज्य विस्तार और पड़ोसी राज्यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्यात्मक राज्यों के तब भी स्पष्ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्यों का विस्तार हो रहा था। इसके बावजूद भारत छोटे-छोटे साम्राज्यों में बंट गया।
आठवीं सदी में सिंध पर अरब से आने वालों का अधिकार हो गया। यह इस्लामी थे। बारहवीं सदी के अन्त तक दिल्ली की गद्दी पर तुर्क के भगोडे सत्तासीन हो गये थे। जिन्होंने अगले कई सालों तक भारत के विभिन्न हिस्सों में राज किया। दक्षिण में हिन्दू विजयनगर और गोलकुंडा के राज्य थे। 1556 में विजय नगर का पतन हुआ। सन् 1526 में मध्य एशिया से निर्वासित बाबर ने काबुल में पनाह ली और भारत पर आक्रमण किया। उसने मुग़लवंश के नाम से भारत की धरती पर स्थापना की जो 300वर्ष तक कायम रही। इसी समय दक्षिण-पूर्वी तट से पुर्तगाल का समुद्री व्यापार आरम्भ हो गया था। बाबर का पोता अकबर धार्मिक सहिष्णुता के लिए विख्यात हुआ। क्योकिं उसने हिन्दुओं पर लगाया गया जज़िया टैक्स हटाया था। 1659 में औरंग़ज़ेब ने इस टैक्स को फ़िर से लागू कर दिया था। औरंग़ज़ेब ने कश्मीर में तथा अन्य स्थानों पर हिन्दुओं को जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने के लिये मजबूर किया। उसी समय केन्द्रीय और दक्षिण भारत में शिवाजी के नेतृत्व में मराठे शक्तिशाली हो रहे थे। औरंगज़ेब ने दक्षिण की ओर ध्यान लगाया तो उत्तर में सिक्खों का उदय हो गया। औरंग़ज़ेब के मरते ही (1707) मुगल साम्राज्य बिखर गया। अंग्रेज़ों ने डच, पुर्तगाली तथा फ्रांसिसि को भगाकर भारत पर व्यापार का अधिकार सुनिश्चित किया और 1847 के एक विद्रोह को कुचलने के बाद सत्ता पर काबिज़ हो गए। भारत को आज़ादी 1947 में मिली, लेकिन इसके लिये भारत के हिस्से कर बंगलादेश, पाकिस्तान, बर्मा आदि को अलग रास्ट्र का दर्जा दे दिया। 1947 के बाद से भारत में गणतांत्रिक शासन लागू है।
समान्यत विद्वान भारतीय इतिहास को एक संपन्न पर अर्धलिखित इतिहास बताते हैं पर भारतीय इतिहास के कई स्रोत है। सिंधु घाटी की लिपि, अशोक के शिलालेख, हेरोडोटस, फ़ा हियान, ह्वेन सांग, संगम साहित्य, मार्कोपोलो, संस्कृत लेखकों आदि से प्राचीन भारत का इतिहास प्राप्त होता है। मध्यकाल में अल-बेरुनी और उसके बाद दिल्ली सल्तनत के राजाओं की जीवनी भी महत्वपूर्ण है। बाबरनामा, आईन-ए-अकबरी आदि जीवनियाँ हमें उत्तर मध्यकाल के बारे में बताती हैं ।
भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण 100,000 से 80,000 वर्ष पूर्व का है।। पाषाण युग (भीमबेटका, मध्य प्रदेश) के चट्टानों पर चित्रों का कालक्रम 40,000 ई पू से 9000 ई पू माना जाता है। प्रथम स्थायी बस्तियां ने 9000 वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। उत्तर पश्चिम में सिन्धु घाटी सभ्यता 7000 ई पू विकसित हुई, जो 26वीं शताब्दी ईसा पूर्व और 20वीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य अपने चरम पर थी| वैदिक सभ्यता का कालक्रम भी ज्योतिष के विश्लेषण से 4000 ई पू तक जाता है।
श्रीमद्भागवत के पञ्चम पांचवे स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वायंभुव मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे।
1000 ई पू के पश्चात 16 महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं। 500 ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए| उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोडी। 180 ईसवी के आरम्भ से, मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीक, इंडो-स्किथिअन, इंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, कदम्ब, पल्लव तथा पांड्य चले। विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फ़ले-फ़ूले।
1000 ई पू के पश्चात 16 महाजनपद उत्तर भारत में मिलते हैं। 500 ईसवी पूर्व के बाद, कई स्वतंत्र राज्य बन गए| उत्तर में मौर्य वंश, जिसमें चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक सम्मिलित थे, ने भारत के सांस्कृतिक पटल पर उल्लेखनीय छाप छोडी। 180 ईसवी के आरम्भ से, मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में इंडो-ग्रीक, इंडो-स्किथिअन, इंडो-पार्थियन और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया। दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, कदम्ब, पल्लव तथा पांड्य चले। विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फ़ले-फ़ूले।