आरती सोमवार की
आरती श्री चन्द्र भगवान की Shri Chandr Bhagwan ki Aarti
ओम जय श्री चन्द्रयती, स्वामी जय श्री चन्द्रयती।
अजर अमर अविनाशी, योगी योगपति।।..........
सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता।
आगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता।।
कर्ण कुंडल कर तुम्बा गलसेली साजे।
कांबलिया के साहिब चहुं दिश के राजे।।
अचल अडोल समाधि पद्मासन सोहे।
बालयती बनवासी देखत जग मोहे।।
कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुटधारी।
धर्म हेत जग प्रकटे शंकर त्रिपुरारी।।
बाल छवि अतिसुन्दर निशदिन मुस्काते।
भृकुटी विशाल सुलोचन निजानन्द राते।।
उदासीन आचार्य करुणा कर देवा।
पुरुषोत्तम परमात्मा तुम हमारे स्वामी।।
ऋषि मुनि ब्रह्मज्ञानी गुण गावत तेरे।
तुम शरणागत रक्षक तुम ठाकुर मेरे।।
जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगति।
श्रद्धानन्द को दीजे भगती विमल मती।।
अजर अमर अविनाशी योगी..............
अजर अमर अविनाशी, योगी योगपति।।..........
सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता।
आगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता।।
कर्ण कुंडल कर तुम्बा गलसेली साजे।
कांबलिया के साहिब चहुं दिश के राजे।।
अचल अडोल समाधि पद्मासन सोहे।
बालयती बनवासी देखत जग मोहे।।
कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुटधारी।
धर्म हेत जग प्रकटे शंकर त्रिपुरारी।।
बाल छवि अतिसुन्दर निशदिन मुस्काते।
भृकुटी विशाल सुलोचन निजानन्द राते।।
उदासीन आचार्य करुणा कर देवा।
पुरुषोत्तम परमात्मा तुम हमारे स्वामी।।
ऋषि मुनि ब्रह्मज्ञानी गुण गावत तेरे।
तुम शरणागत रक्षक तुम ठाकुर मेरे।।
जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगति।
श्रद्धानन्द को दीजे भगती विमल मती।।
अजर अमर अविनाशी योगी..............