वराह पुराण
भगवान के 24 अवतारों में वराह अवतार प्रमुख अवतार है। उन्हीं के नाम पर इस पुराण का नाम वराह पुराण हुआ। भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण करके समुद्र में डूबती हुयी पृथ्वी को पुनःस्थापित किया। उस समय पृथ्वी देव ने भगवान की स्तुति की और जीवों के कल्याण के लिये बहुत से प्रश्न किये। भगवान वराह की धर्मोपदेश की वे ही कथायें वराह पुराण के नाम से प्रसिद्ध हुयी। वराह पुराण में 217 अध्यायों में 10 हजार श्लोक हैं। इसे श्रवण करने से जीवन के समस्त दुःखों का नाश हो जाता है।
पूर्वकाल में महाबलि दानव हिृरण्यकश्यप के भाई हिृरण्याक्ष ने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड से चुराकर रसातल में जाकर रख दिया और स्वयं उसकी रखवाली करने लगा। उधर ब्रह्माण्ड से पृथ्वी के गायब हो जाने पर चोरों ओर हा-हाकार मच गया। तब एक दिन ब्रह्माजी को बड़े जोर की छींक आयी और उनकी नाक से एक अजीब किस्म का जीव बाहर आया। उस जीव ने पल भर में विशाल रूप धारण कर लिया। चार भुजाओं वाले इस जीव का स्वरूप वराह (शूकर) के समान था। उसके चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा, कमल, पुष्प विराजमान थे। उसके घुरघुराहट युक्त ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गयी। तब वह वराह हाथ में गदा लिये हुये अथाह जल में कूद पड़ा और वहाँ जा पहुँचा, जहाँ हिृरण्याक्ष ने पृथ्वी को रखा था। वराह ने भयानक गर्जना की और पृथ्वी को अपने दाढ़ों (बाहर निकले हुये दाँतों में) पर ऐसे उठा लिया जैसे मानो कमल का फूल हो, तभी हिृरण्याक्ष जाग उठा और वह वराह भगवान को युद्ध के लिये ललकारने लगा। अब तो भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। कई वर्षों तक युद्ध के पश्चात् वराह भगवान ने अपनी विशाल गदा से हिृरण्याक्ष को मार गिराया। हिृरण्याक्ष के मरते ही देवता, ऋषि, गन्धर्व व सभी लोग बड़े प्रसन्न हुये और वराह भगवान पर पुष्पों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। भगवान वराह ने पृथ्वी को लाकर पुनः ब्रह्माण्ड में स्थापित किया। उस समय पृथ्वी ने भगवान वराह की स्तुति की और लोगों के कल्याणार्थ बहुत से प्रश्न पूछे। तब भगवान वराह ने धर्मोपदेश की कथायें सुनायी वही यह वराह पुराण है। इस पवित्र पुराण की कथा सुनने से जीवन में सांसारिक दुःख नहीं लगते तथा मनुष्य भगवान की कृपा का पात्र हो जाता है।
वराह पुराण के नियम:-
वराह पुराण शुद्ध वैष्णव पुराण हैै। व्रत, उपवास करते हुये वराह पुराण की कथा सुननी चाहिये तथा नारायण मंत्र का जाप करते हुये श्रद्धा एवं सामथ्र्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देनी चाहिये। इस पूजा के समय दान-दक्षिण एवं ब्राह्मण पूजा का बड़ा महत्व होता है। क्योंकि भगवान विष्णु के निमित्त ब्राह्मण जिमाये जाते हैं। जितनी श्रद्धा एवं भक्ति से हम ब्राह्मणों को दान करते हैं वह सीधे भगवान को प्राप्त होता है।
वराह पुराण सुनने का फल:-
इस पावन पुराण में सदाचार एवं दुराचार के फलस्वरूप मिलने वाले स्वर्ग व नर्क का वर्णन, पापों के प्रायश्चित करने की विधि, सप्त द्वीपों का वर्णन, पशुपालन, व्रत-उपवास, पिण्ड-दान आदि के विषय मेें तथा भगवान के दशावतारों का वर्णन भी किया गया है। जिसे श्रवण करने से मनुष्य जीवन में लगने वाले तीन प्रकार के तापों का नाश हो जाता है। यह पुराण घर में शान्ति प्रदान करता है, धन-धान्य में वृद्धि करता है, बल-बुद्धि को बढ़ाता है तथा मनोवाँछित फल प्रदान करने वाला है।
पूर्वकाल में महाबलि दानव हिृरण्यकश्यप के भाई हिृरण्याक्ष ने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड से चुराकर रसातल में जाकर रख दिया और स्वयं उसकी रखवाली करने लगा। उधर ब्रह्माण्ड से पृथ्वी के गायब हो जाने पर चोरों ओर हा-हाकार मच गया। तब एक दिन ब्रह्माजी को बड़े जोर की छींक आयी और उनकी नाक से एक अजीब किस्म का जीव बाहर आया। उस जीव ने पल भर में विशाल रूप धारण कर लिया। चार भुजाओं वाले इस जीव का स्वरूप वराह (शूकर) के समान था। उसके चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा, कमल, पुष्प विराजमान थे। उसके घुरघुराहट युक्त ध्वनि पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गयी। तब वह वराह हाथ में गदा लिये हुये अथाह जल में कूद पड़ा और वहाँ जा पहुँचा, जहाँ हिृरण्याक्ष ने पृथ्वी को रखा था। वराह ने भयानक गर्जना की और पृथ्वी को अपने दाढ़ों (बाहर निकले हुये दाँतों में) पर ऐसे उठा लिया जैसे मानो कमल का फूल हो, तभी हिृरण्याक्ष जाग उठा और वह वराह भगवान को युद्ध के लिये ललकारने लगा। अब तो भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। कई वर्षों तक युद्ध के पश्चात् वराह भगवान ने अपनी विशाल गदा से हिृरण्याक्ष को मार गिराया। हिृरण्याक्ष के मरते ही देवता, ऋषि, गन्धर्व व सभी लोग बड़े प्रसन्न हुये और वराह भगवान पर पुष्पों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। भगवान वराह ने पृथ्वी को लाकर पुनः ब्रह्माण्ड में स्थापित किया। उस समय पृथ्वी ने भगवान वराह की स्तुति की और लोगों के कल्याणार्थ बहुत से प्रश्न पूछे। तब भगवान वराह ने धर्मोपदेश की कथायें सुनायी वही यह वराह पुराण है। इस पवित्र पुराण की कथा सुनने से जीवन में सांसारिक दुःख नहीं लगते तथा मनुष्य भगवान की कृपा का पात्र हो जाता है।
वराह पुराण के नियम:-
वराह पुराण शुद्ध वैष्णव पुराण हैै। व्रत, उपवास करते हुये वराह पुराण की कथा सुननी चाहिये तथा नारायण मंत्र का जाप करते हुये श्रद्धा एवं सामथ्र्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा देनी चाहिये। इस पूजा के समय दान-दक्षिण एवं ब्राह्मण पूजा का बड़ा महत्व होता है। क्योंकि भगवान विष्णु के निमित्त ब्राह्मण जिमाये जाते हैं। जितनी श्रद्धा एवं भक्ति से हम ब्राह्मणों को दान करते हैं वह सीधे भगवान को प्राप्त होता है।
वराह पुराण सुनने का फल:-
इस पावन पुराण में सदाचार एवं दुराचार के फलस्वरूप मिलने वाले स्वर्ग व नर्क का वर्णन, पापों के प्रायश्चित करने की विधि, सप्त द्वीपों का वर्णन, पशुपालन, व्रत-उपवास, पिण्ड-दान आदि के विषय मेें तथा भगवान के दशावतारों का वर्णन भी किया गया है। जिसे श्रवण करने से मनुष्य जीवन में लगने वाले तीन प्रकार के तापों का नाश हो जाता है। यह पुराण घर में शान्ति प्रदान करता है, धन-धान्य में वृद्धि करता है, बल-बुद्धि को बढ़ाता है तथा मनोवाँछित फल प्रदान करने वाला है।