Akash Ganga Paying Guest (A/C) only for Girls, #1108, Sec 13, Kurukshetra-136118
आरती गणेश जी
सदा भवानी दाहिनी गौरी पुत्र गणेश।
पांच देव रक्षा करे ब्रह्मा विष्णु महेश॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय ॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डूअन का भोग लगे संत करे सेवा॥ जय ॥
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी,
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी॥ जय ॥
अनधन को आँख देत कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥ जय ॥
दीनन की लाज रखो शुभ सूत हमारी,
कामना पूरी करो, जाऊ बलिहारी॥ जय ॥
पांच देव रक्षा करे ब्रह्मा विष्णु महेश॥
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा,
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जय ॥
पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डूअन का भोग लगे संत करे सेवा॥ जय ॥
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी,
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी॥ जय ॥
अनधन को आँख देत कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया॥ जय ॥
दीनन की लाज रखो शुभ सूत हमारी,
कामना पूरी करो, जाऊ बलिहारी॥ जय ॥
आरती गणपति जी की
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरें।
तीन लोग तैंतीस देवता, द्वार खड़े सब अरज करें।।
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण बाम विराजै, अरु आनन्द से चंवर करें।
धूप दीप और लिये आरती, भक्त खड़े जयकार करें।।
गुड़ के मोदक भोग लगते हैं, मूषक वाहन चढ़या करें।
सौम्यरूप सेवा गणपति की, विध्न भाग जा दूर परें।।
भादों मास और शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपहर पूर परें।
लियो जन्म गणपति प्रभु जी ने, दुर्गा मन आनन्द भरें।।
अद्भुत बाजा बजे इन्द्र का, देव बन्धु जहां गान करें।
श्री शंकर को आनन्द उपज्यो, नाम सुने सब विघ्न टरें।।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र, अप्सरा नृत्य करें।
देखत वेद ब्रह्माजी जाको, विघ्न विनाशक नाम धरें।।
एक दन्त गजबदन विनायक, त्रिनयन रूप अनूप धरें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है, देख चंद्रमा हास्य करें।।
दे शाप श्री चन्द्र देव को, कलाहीन तत्काल करें।
चौदह लोक मे फिरें गणपति, तीन भुवन मे राज्य करें।।
उठि प्रभात जब आरती गावें, जाके सिर यश छत्र फिरें।
गणपति की पूजा पहिले करनी, काम सभी निर्विघ्न सरें।।
'श्री प्रताप' गणपति जी की, कर जोड़कर स्तुति करें।
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरें।।
तीन लोग तैंतीस देवता, द्वार खड़े सब अरज करें।।
ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण बाम विराजै, अरु आनन्द से चंवर करें।
धूप दीप और लिये आरती, भक्त खड़े जयकार करें।।
गुड़ के मोदक भोग लगते हैं, मूषक वाहन चढ़या करें।
सौम्यरूप सेवा गणपति की, विध्न भाग जा दूर परें।।
भादों मास और शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपहर पूर परें।
लियो जन्म गणपति प्रभु जी ने, दुर्गा मन आनन्द भरें।।
अद्भुत बाजा बजे इन्द्र का, देव बन्धु जहां गान करें।
श्री शंकर को आनन्द उपज्यो, नाम सुने सब विघ्न टरें।।
आन विधाता बैठे आसन इन्द्र, अप्सरा नृत्य करें।
देखत वेद ब्रह्माजी जाको, विघ्न विनाशक नाम धरें।।
एक दन्त गजबदन विनायक, त्रिनयन रूप अनूप धरें।
पग खम्बा सा उदर पुष्ट है, देख चंद्रमा हास्य करें।।
दे शाप श्री चन्द्र देव को, कलाहीन तत्काल करें।
चौदह लोक मे फिरें गणपति, तीन भुवन मे राज्य करें।।
उठि प्रभात जब आरती गावें, जाके सिर यश छत्र फिरें।
गणपति की पूजा पहिले करनी, काम सभी निर्विघ्न सरें।।
'श्री प्रताप' गणपति जी की, कर जोड़कर स्तुति करें।
गणपति की सेवा मंगल मेवा, सेवा से सब विघ्न टरें।।