नारद पुराण
नारद पुराण विष्णु भक्ति के महात्मय को प्रतिपादित करने वाला एक वैष्णव पुराण है। इसके श्रवण करने से समस्त पापों का प्रक्षालन हो जाता है। इस पुराण में 25000 श्लोक हैं जो दो भागों में बँटा हुआ है। पूर्व भाग एवं उत्तर भाग। पूर्व भाग में नारद जी श्रोता के रूप में प्रतिष्ठित हैं तथा सनक सनन्दन सनत कुमार और सनातन इसके वक्ता हैं। उत्तर भाग के वक्ता महर्षि वशिष्ठ जी तथा श्रोता मान्धाता जी हैं। नारद पुराण भगवान विष्णु जी की भक्ति से ओत-प्रोत है। नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। नारद जी नारायण का जाप करते हुये एवं नारायण की महिमा बताते हुये सर्वत्र विचरण करते रहते हैं। भगवान की भक्ति भगवान के स्वरूप को प्राप्त कराने वाली होती है। इसलिये मनुष्य को नारद जी की तरह हर समय भगवान नारायण का स्मरण करना चाहिये। भगवान नाम चर्चा से ही इस संसार से मुक्ति हो सकती है।
भक्ति भगवतः पुंसा भगवद्रुपकारिणी।
तांलब्धा चपरं लाभं को वांछति बिनापशुं।।
भगवद्विमुखा ये तु नरा संसारिणो द्विजाः।
तेषां मुक्तिभवाटब्या नास्ति सत्संग मंतराः ।। (नारद पुराण)
देवर्षि नारद जी ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न माने गये हैं। ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा, ‘‘बेटा, विवाह करो और सष्ष्टि का विस्तार करो।’’ लेकिन नारद जी ने पिता ब्रह्मा जी की बात नहीं मानी, कहने लगे, ‘‘पिताजी, मैं विवाह नहीं करूँगा। मैं केवल भगवान पुरूषोत्तम की भक्ति करना चाहता हूँ और जो भगवान को छोड़कर विषयों एवं भोगों में मन लगाये उससे अधिक मूर्ख कौन होगा! विषय तो स्वप्न के समान नश्वर, तुच्छ एवं विनाशकारी हैं।’’
आदेश न मानने पर ब्रह्मा जी ने रोष में आकर नारदजी को श्राप दे दिया एवं कहा कि ‘‘तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी, इसलिये तुम्हारा समस्त ज्ञान नष्ट हो जायेगा और तुम गन्धर्व योनी को प्राप्त कर कामिनीयों के वशीभूत हो जाओगे।’’ नारदजी ने कहा, ‘‘पिताजी, आपने यह क्या किया? अपने तपस्वी पुत्र को श्राप दे दिया? लेकिन एक कष्पा जरूर करना जिस-जिस योनि में मेरा जन्म हो, भगवान भक्ति मुझे कभी न छोड़े एवं मुझे पूर्व जन्मों का स्मरण रहे। और हाँ, आपने मुझे बिना किसी अपराध के श्राप दिया है, अतः मैं भी तुम्हें श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में तुम्हारी पूजा नहीं होगी। आपके मंत्र-स्त्रोत कवच सभी लोप हो जायेंगे।’’
ब्रह्मा जी के श्राप से नारद जी को गन्धर्व योनि में जन्म लेना पड़ा तथा दो योनियों में जन्म लेने के पश्चात् उन्हें परब्रह्मज्ञानी नारद स्वरूप प्राप्त हुआ।
गायन्न्ा माद्यन्निदं तंत्र्या रमयत्यातुरं जगत्।
अहो! देवर्षि नारद धन्य हैं क्योंकि ये भगवान की कीर्ति को अपनी वीणा पर गाकर स्वयं तो आनन्दमयी रहते हैं साथ ही दुःखों से संतप्त जगत को भी आनन्दित करते रहते हैं। नारद पुराण में सदाचार, महिमा, एकादशी व्रत तथा गंगा उत्पत्ति महात्मय, वर्णाश्रम धर्म, पंच महापातक, प्रायश्चित कर्म, पूजन विधि, गायंत्री मंत्र जाप विधि, तीर्थ स्थानों का महत्व, दान महात्मय आदि पर विशिष्ट चर्चा की गयी है।
नारद पुराण सुनने का फल:-
नारद पुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। मनुष्य ज्ञानी होकर इस संसार में पुर्नजन्म नहीं लेता। नारद पुराण कथा करने एवं सुनने से नारायण की निश्चल भक्ति प्राप्त होती है। नारदोदेव दर्शनः। अर्थात् जिन्हें नारद जी के दर्शन हो जायें उसे नारायण के दर्शन अवश्य होते हैं।
नारद पुराण करवाने का मुहुर्त:-
नारद पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। नारद पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन नारद पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
नारद पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
नारद पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में नारद पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी नारद पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
नारद पुराण करने के नियम:-
नारद पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। नारद पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
भक्ति भगवतः पुंसा भगवद्रुपकारिणी।
तांलब्धा चपरं लाभं को वांछति बिनापशुं।।
भगवद्विमुखा ये तु नरा संसारिणो द्विजाः।
तेषां मुक्तिभवाटब्या नास्ति सत्संग मंतराः ।। (नारद पुराण)
देवर्षि नारद जी ब्रह्मा जी के कंठ से उत्पन्न माने गये हैं। ब्रह्मा जी ने उन्हें कहा, ‘‘बेटा, विवाह करो और सष्ष्टि का विस्तार करो।’’ लेकिन नारद जी ने पिता ब्रह्मा जी की बात नहीं मानी, कहने लगे, ‘‘पिताजी, मैं विवाह नहीं करूँगा। मैं केवल भगवान पुरूषोत्तम की भक्ति करना चाहता हूँ और जो भगवान को छोड़कर विषयों एवं भोगों में मन लगाये उससे अधिक मूर्ख कौन होगा! विषय तो स्वप्न के समान नश्वर, तुच्छ एवं विनाशकारी हैं।’’
आदेश न मानने पर ब्रह्मा जी ने रोष में आकर नारदजी को श्राप दे दिया एवं कहा कि ‘‘तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी, इसलिये तुम्हारा समस्त ज्ञान नष्ट हो जायेगा और तुम गन्धर्व योनी को प्राप्त कर कामिनीयों के वशीभूत हो जाओगे।’’ नारदजी ने कहा, ‘‘पिताजी, आपने यह क्या किया? अपने तपस्वी पुत्र को श्राप दे दिया? लेकिन एक कष्पा जरूर करना जिस-जिस योनि में मेरा जन्म हो, भगवान भक्ति मुझे कभी न छोड़े एवं मुझे पूर्व जन्मों का स्मरण रहे। और हाँ, आपने मुझे बिना किसी अपराध के श्राप दिया है, अतः मैं भी तुम्हें श्राप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में तुम्हारी पूजा नहीं होगी। आपके मंत्र-स्त्रोत कवच सभी लोप हो जायेंगे।’’
ब्रह्मा जी के श्राप से नारद जी को गन्धर्व योनि में जन्म लेना पड़ा तथा दो योनियों में जन्म लेने के पश्चात् उन्हें परब्रह्मज्ञानी नारद स्वरूप प्राप्त हुआ।
गायन्न्ा माद्यन्निदं तंत्र्या रमयत्यातुरं जगत्।
अहो! देवर्षि नारद धन्य हैं क्योंकि ये भगवान की कीर्ति को अपनी वीणा पर गाकर स्वयं तो आनन्दमयी रहते हैं साथ ही दुःखों से संतप्त जगत को भी आनन्दित करते रहते हैं। नारद पुराण में सदाचार, महिमा, एकादशी व्रत तथा गंगा उत्पत्ति महात्मय, वर्णाश्रम धर्म, पंच महापातक, प्रायश्चित कर्म, पूजन विधि, गायंत्री मंत्र जाप विधि, तीर्थ स्थानों का महत्व, दान महात्मय आदि पर विशिष्ट चर्चा की गयी है।
नारद पुराण सुनने का फल:-
नारद पुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। मनुष्य ज्ञानी होकर इस संसार में पुर्नजन्म नहीं लेता। नारद पुराण कथा करने एवं सुनने से नारायण की निश्चल भक्ति प्राप्त होती है। नारदोदेव दर्शनः। अर्थात् जिन्हें नारद जी के दर्शन हो जायें उसे नारायण के दर्शन अवश्य होते हैं।
नारद पुराण करवाने का मुहुर्त:-
नारद पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। नारद पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन नारद पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।
नारद पुराण का आयोजन कहाँ करें?:-
नारद पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में नारद पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी नारद पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
नारद पुराण करने के नियम:-
नारद पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। नारद पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।